बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2025) की आहट के बीच किशनगंज जिले की बहादुरगंज विधानसभा सीट सुर्खियों में है। कांग्रेस पार्टी जहां वोट चोरी के खिलाफ अभियान चला रही है, वहीं इस सीट को लेकर महागठबंधन में तनाव गहराता जा रहा है। कांग्रेस नेताओं ने बहादुरगंज प्रखंड के भाटाबाड़ी पंचायत अंतर्गत सीतागाछ गांव में आदिवासी समुदाय के बीच हस्ताक्षर अभियान चलाया। यह अभियान 15 सितंबर से शुरू होकर 15 अक्टूबर तक देशभर में जारी रहेगा। कांग्रेस का आरोप है कि वोट चोरी से लोकतंत्र खतरे में है और इसे बचाने के लिए जनता की जागरूकता बेहद ज़रूरी है।
हालांकि, इस जनसंपर्क और आंदोलन के बीच राजनीतिक समीकरण भी बदलते नजर आ रहे हैं। महागठबंधन के दो प्रमुख घटक दल—राजद और कांग्रेस—बहादुरगंज सीट पर आमने-सामने हैं। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। आज़ादी के बाद से अब तक कांग्रेस ने यहां से दस बार जीत दर्ज की है और 2020 तक तौसीफ आलम लगातार तीन बार कांग्रेस से विधायक रहे। लेकिन फिलहाल इस सीट पर राजद विधायक अंजार नयमी काबिज हैं, जिन्होंने 2020 में एआईएमआईएम के टिकट पर जीत दर्ज की और बाद में राजद में शामिल हो गए।
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यही वजह है कि कांग्रेस अब इस सीट को अपने खाते में चाहती है और महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान तेज हो गई है। कांग्रेस नेता इमरान आलम ने कहा कि बहादुरगंज में पार्टी का ऐतिहासिक प्रभाव रहा है और यह सीट कांग्रेस को ही मिलनी चाहिए। उन्होंने बताया कि पार्टी का “गुलदस्ता अभियान” आदिवासी और हाशिये पर खड़े समुदायों को जोड़ने का प्रयास है।
इमरान आलम ने वादों की झड़ी लगाते हुए कहा कि यदि बिहार में कांग्रेस की सरकार बनी तो “हर घर अधिकार” योजना के तहत 2500 रुपये महीना, 200 यूनिट फ्री बिजली, 25 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज और भूमिहीन परिवारों को पांच डिसमिल जमीन दी जाएगी। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि ऐसे वादों और जमीनी पकड़ के आधार पर बहादुरगंज से उनकी दावेदारी मजबूत है।
दूसरी ओर, राजद इस सीट को अपनी मान रही है और उसका दावा है कि वर्तमान विधायक अंजार नयमी जनता के बीच मजबूत पकड़ रखते हैं। ऐसे में महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे का यह टकराव चुनाव से पहले बड़ी चुनौती बन सकता है।






















