Bihar BJP New President: उत्तर प्रदेश में भाजपा ने पंकज चौधरी को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाकर संगठनात्मक बदलावों की दिशा साफ कर दी है। इसी फैसले के बाद अब सियासी नजरें बिहार पर टिक गई हैं, जहां प्रदेश अध्यक्ष के पद को लेकर चर्चाएं अचानक तेज हो गई हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल का एक बार फिर बिहार सरकार में मंत्री बनना है। ऐसे में पार्टी के भीतर यह सवाल जोर पकड़ रहा है कि क्या बिहार में भी जल्द नया प्रदेश अध्यक्ष मिलेगा या फिर यह फैसला राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव तक टल सकता है।
दरअसल, दिलीप जायसवाल पहले भी मंत्री बने थे, लेकिन भाजपा की ‘एक व्यक्ति, एक पद’ की परंपरा के तहत उन्होंने तब मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इस बार परिस्थितियां थोड़ी अलग हैं। भाजपा में यह सिद्धांत फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह लागू नहीं हो पा रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2024 में समाप्त हो चुका है, लेकिन लोकसभा चुनाव और बदलते राजनीतिक हालात के चलते उन्हें अब तक विस्तार मिलता रहा है। इसी कारण संगठन के कई बड़े फैसले लंबित माने जा रहे हैं।
यही वजह है कि बिहार में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। एक खेमा मानता है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद ही राज्यों में बड़े संगठनात्मक बदलाव होंगे, जबकि दूसरा वर्ग यूपी में नियुक्ति के बाद इसे संकेत मान रहा है कि बिहार में भी जल्द फैसला लिया जा सकता है। यूपी में पंकज चौधरी के चयन को जातीय संतुलन, संगठन और सरकार के बीच स्पष्ट विभाजन और 2024 के बाद की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। पार्टी के भीतर यह चर्चा आम है कि यही फॉर्मूला बिहार में भी लागू किया जा सकता है।
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बिहार में नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन को लेकर जातीय समीकरण, संगठनात्मक अनुभव और राजनीतिक स्वीकार्यता को अहम माना जा रहा है। ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा के बेटे और झंझारपुर से पांच बार विधायक रहे नीतीश मिश्रा का नाम सबसे आगे बताया जा रहा है। इस बार मंत्रिमंडल में जगह न मिलने के बाद यह माना जा रहा है कि पार्टी उन्हें संगठन में बड़ी जिम्मेदारी सौंप सकती है। मिथिला क्षेत्र में एनडीए की मजबूत पकड़ और ब्राह्मण नेतृत्व की संभावित जरूरत उनके नाम को मजबूत बनाती है।
दलित वर्ग से पूर्व मंत्री जनक राम का नाम भी चर्चा में है। मंत्रिमंडल से बाहर रहने के बावजूद संगठन में उन्हें बड़ी भूमिका मिलने की अटकलें तेज हैं। यूपी की तर्ज पर बिहार में भी दलित प्रदेश अध्यक्ष का प्रयोग पार्टी के सामाजिक संतुलन को मजबूत कर सकता है। वहीं ओबीसी वर्ग से दीघा के विधायक संजीव चौरसिया का नाम भी सामने आ रहा है। संघ और भाजपा से उनका पुराना नाता रहा है और मंत्री न बनाए जाने के बाद संगठन में अहम जिम्मेदारी मिलने की चर्चा उनके पक्ष में मानी जा रही है।
भूमिहार समाज से नवादा सांसद विवेक ठाकुर का नाम भी संभावित दावेदारों में शामिल है। उनके पिता सीपी ठाकुर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे हैं। एनडीए के 202 विधायकों में 22 भूमिहार होने के बावजूद मंत्रिमंडल में अपेक्षाकृत कम प्रतिनिधित्व को देखते हुए संगठनात्मक संतुलन के लिहाज से उनके नाम पर भी मंथन हो रहा है।






















