नई दिल्ली में लगातार हो रही बैठकों ने इस ठंड में भी बिहार भाजपा की सियासत को गर्मा दिया है। सबको पता है कि प्रदेश भाजपा संगठन (Bihar BJP Organization) का विस्तार खरमास यानी 14 जनवरी 2025 के बाद होना है, लेकिन राजनीति में इंतजार कम ही लोग करते हैं। यही वजह है कि संगठन विस्तार से पहले ही जोड़-तोड़, संपर्क और पहुंच की कवायद तेज हो चुकी है। जिसकी जहां तक पहुंच है, वह वहां तक दस्तक देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। दिल्ली के सत्ता गलियारों से लेकर पटना के राजनीतिक ड्रॉइंग रूम तक चर्चाओं का बाजार गर्म है।
इस हलचल की बड़ी वजह बिहार भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष संजय सरावगी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुई शिष्टाचार मुलाकात मानी जा रही है। इस मुलाकात में संजय सरावगी ने प्रधानमंत्री को मां जानकी की जन्मस्थली पुनौरा धाम की तस्वीर वाला मोमेंटो और मधुबनी पेंटिंग से बनी शॉल भेंट की। राजनीतिक रूप से यह सिर्फ एक औपचारिक मुलाकात नहीं मानी जा रही, बल्कि इसे संगठन के भविष्य की दिशा से जोड़कर देखा जा रहा है। इसी के बाद प्रदेश भाजपा का राजनीतिक पारा अचानक ऊपर चढ़ गया।
भाजपा के भीतरखाने की चर्चाओं पर नजर डालें तो साफ संकेत मिलते हैं कि संजय सरावगी संगठन खड़ा करने में जल्दबाजी नहीं करेंगे। पार्टी में उनकी छवि एक ऐसे नेता की है जो फैसले लेने से पहले हर पहलू को गहराई से समझते हैं। यह भी अहम है कि वे इससे पहले कभी प्रदेश संगठन के किसी बड़े पद पर नहीं रहे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि वे पहले संगठन की नब्ज, गुटों की स्थिति और क्षेत्रीय-सामाजिक समीकरणों को समझेंगे, उसके बाद ही किसी बड़े निर्णय पर मुहर लगाएंगे।
प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद संजय सरावगी ने मीडिया के सामने यह साफ कर दिया था कि संगठन में पुराने और जमीनी कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता दी जाएगी। उनके इस बयान के बाद यह चर्चा तेज हो गई कि भाजपा संगठन को ‘आयातित नेताओं’ से दूर रखने की कोशिश करेगी। चूंकि संजय सरावगी खुद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि से आते हैं, इसलिए ऐसे कार्यकर्ताओं को संगठन में जगह मिलने की संभावना ज्यादा मानी जा रही है। यह संकेत संगठन की कार्यशैली और भविष्य की राजनीति दोनों को प्रभावित कर सकता है।
Bihar IAS Transfer 2025: सत्ता से सिस्टम तक बड़ा रीसेट, बिहार सरकार ने 15 IAS अफसरों की नई टीम उतारी
संगठन की प्राथमिकताओं को लेकर भी पार्टी के भीतर एक स्पष्ट ट्रेंड दिख रहा है। भाजपा चाहती है कि संगठन का ढांचा ऐसा हो जिसमें सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन मजबूत नजर आए। इसके साथ ही नजर भविष्य की राजनीति पर भी है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक भाजपा का मिशन ‘माइनस यादव’ की रणनीति के साथ ओबीसी और ईबीसी वर्ग को साधने पर केंद्रित है। इसी वजह से संगठन में इन वर्गों से जुड़े पदाधिकारियों की संख्या बढ़ सकती है। सवर्ण वर्ग भाजपा का आधार वोट माना जाता है, इसलिए संतुलन साधने की कोशिश वहां भी दिखाई देगी।
अब असली तस्वीर खरमास के बाद ही साफ होगी, जब संगठन विस्तार की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू होगी। तब यह भी सामने आएगा कि बिहार भाजपा का नया संगठन सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरणों को कितनी कुशलता से संतुष्ट कर पाता है। फिलहाल इतना तय है कि दिल्ली से शुरू हुई यह सियासी हलचल आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति को नई दिशा देने वाली है।






















