बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Chunav 2020 Analysis) का टर्म अब खत्म होने को है। इसी साल फिर चुनाव होना है। लेकिन जब भी बात 2020 के बिहार चुनाव की होती है तो यह बहस जिंदा हो जाती है कि यह जीत NDA की रणनीति की थी या फिर जातीय समीकरण और महामारी के डर का नतीजा। 243 सीटों में से 125 पर कब्जा जमाकर नीतीश कुमार ने साबित कर दिया कि वे बिहार की राजनीति के ‘अनटचेबल सूत्रधार’ हैं। लेकिन क्या यह चुनाव वास्तव में विकास के मुद्दों पर लड़ा गया था, या फिर यह ‘सियासी गणित’ का खेल था?
बिहार चुनाव के बाद नीतीश कुमार का ‘मंदिर-मजार-गुरुद्वारा’ दौरा
आइए, उन पांच पहलुओं पर गौर करें जिन्होंने इस चुनाव का निर्धारण किया:
- ‘महागठबंधन’ बनाम ‘NDA’: क्यों चूक गया तेजस्वी का ‘यूथ कार्ड’?
तेजस्वी यादव ने 10 लाख नौकरियों का वादा करके युवाओं को लुभाने की कोशिश की, लेकिन NDA ने जातिगत समीकरण (मुस्लिम-यादव vs कोइरी-कुर्मी-सवर्ण-अतिपिछड़ा) के सहारे इसका मुंहतोड़ जवाब दिया। - कोरोना का ‘छाया युद्ध’: कैसे बदला मतदान का समीकरण?
महामारी के बीच हुए इस चुनाव में प्रवासी मजदूरों की वापसी एक बड़ा मुद्दा था। NDA ने 1,000 रुपये की आर्थिक मदद का ऐलान करके गरीबों का भरोसा जीता। महागठबंधन ने बेरोजगारी भत्ता का वादा किया, लेकिन उनकी आवाज शहरी मध्यवर्ग तक नहीं पहुंची। - ‘सुशासन’ बनाम ‘परिवारवाद’: किसने किया धुरंधरों को चेकमेट?
नीतीश कुमार ने शराबबंदी, साइकिल योजना और बेटी बचाओ जैसे मुद्दों को उछालकर महिला वोटर्स (47% भागीदारी) का भरोसा बनाए रखा। तेजस्वी यादव पर ‘परिवारवाद’ और भ्रष्टाचार के आरोपों का असर हुआ, खासकर उच्च जातियों और शहरी वर्ग में। - जाति का ‘साइलेंट टाइडल वेव’: कौन सा समीकरण हुआ बदलाव?
LJP का विद्रोह: चिराग पासवान ने NDA के खिलाफ मैदान में उतरकर 12% दलित वोट्स को बांटने का काम किया।
मुस्लिम वोट्स: 16% मुस्लिम मतदाताओं ने महागठबंधन को समर्थन दिया, लेकिन AIMIM ने 5 सीटें जीतकर वोट कटौती की रणनीति सफल की। - मीडिया और सोशल मीडिया: किसकी ‘नैरेटिव’ हुई धार?
• NDA: ‘डबल इंजन’ (केंद्र और राज्य) के मुद्दे को उछालकर स्थिरता का संदेश दिया।
• महागठबंधन: ‘नीतीश-मोदी विरोधाभास’ पर फोकस किया, लेकिन सोशल मीडिया ट्रॉल्स के चलते उनकी छवि ‘नकारात्मक’ बनी।
चुनाव के बाद का बिहार: क्या बदलाव आया?
• राजनीतिक असर: NDA की जीत ने नीतीश को कमजोर नेतृत्व और BJP को बिहार में मजबूत पकड़ का संकेत दिया।
2020 का बिहार विधानसभा चुनाव: जाति और मुद्दों का संगम.. बदलती राजनीति की तस्वीर
“चुनाव जीत गए, पर सवाल हार गए?”
बिहार 2020 का चुनाव रणनीति की जीत थी, लेकिन यह जनाकांक्षाओं की हार भी साबित हुआ। नीतीश कुमार ने साबित किया कि वे ‘जाति के जादूगर’ हैं, लेकिन बिहार अभी भी रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य के मोर्चे पर उम्मीदों का पिछलग्गू बना हुआ है। दूसरी ओर तेजस्वी यादव के लिए 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव इतिहास में एक ‘मिस्ड ऑपर्च्युनिटी’ के तौर पर याद किया जाएगा।






















