Bihar Chunav 2025: बिहार की राजनीति में इस समय सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या अखिलेश यादव की सक्रिय एंट्री से राज्य का पारंपरिक एमवाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण एक नए राजनीतिक हथियार में बदल सकता है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में ‘पीडीए’ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के दम पर चौंकाने वाला प्रदर्शन किया था। सपा ने भाजपा को करारा झटका देते हुए 37 सीटें जीत ली थीं। अब वही फॉर्मूला बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में आजमाने की तैयारी दिख रही है।
क्या राहुल गांधी शादी का मन बना रहे हैं? बिहार की वोटर अधिकार यात्रा में बयान से छिड़ी सियासी गपशप
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पहले ही “वोट अधिकार यात्रा” के जरिए राज्य की राजनीतिक जमीन पर सक्रिय हो चुके हैं। इस बीच 28 अगस्त को सीतामढ़ी में राहुल गांधी के साथ अखिलेश यादव की मौजूदगी ने राजनीतिक हलकों में अटकलों को और तेज कर दिया है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर कांग्रेस, राजद और सपा एकजुट होकर एमवाई वोट बैंक के साथ पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वोटों को साधने में सफल हो गए तो नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के लिए 2025 का चुनाव बेहद कठिन हो सकता है।
लोकसभा चुनाव के बाद से ही बिहार के सीमांचल और दक्षिणी जिलों में मुस्लिम और यादव वोटरों के रुझान पर खास नजर रखी जा रही है। यही क्षेत्र चुनावी परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। सोशल मीडिया पर लगातार चर्चा हो रही है कि यूपी का पीडीए मॉडल बिहार में एमवाई समीकरण को “बूस्टर डोज” की तरह मजबूती देगा। कई यूजर्स लिख रहे हैं कि राहुल-तेजस्वी की जोड़ी अब अखिलेश की मौजूदगी से और आक्रामक दिखाई दे रही है, जिससे विपक्षी गठबंधन को नई ताकत मिल सकती है।
तेजस्वी यादव ने यात्रा के दौरान आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग की मतदाता सूची से विपक्षी समर्थकों के नाम हटाए जा रहे हैं। वहीं राहुल गांधी ने भी अपने भाषणों में कहा कि “एक व्यक्ति, एक वोट” के अधिकार की रक्षा इस यात्रा का मुख्य लक्ष्य है। कांग्रेस और राजद का मानना है कि यह अभियान जनता से सीधा संवाद बनाने का काम कर रहा है, और अब अखिलेश की मौजूदगी इस प्रयास को व्यापक बना सकती है।
बिहार की राजनीति हमेशा अप्रत्याशित मोड़ लेने के लिए जानी जाती है। यहां जातीय समीकरण और गठबंधन की राजनीति अक्सर अंतिम समय में ही तस्वीर साफ करती है। यही वजह है कि इंडिया गठबंधन की यह तिकड़ी—राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव—राजनीतिक संदेश देने के साथ-साथ अपनी जमीनी ताकत को भी परख रही है। हालांकि, सवाल यही है कि क्या यह ऊर्जा वोटों में तब्दील हो पाएगी? फिलहाल इतना तय माना जा रहा है कि अखिलेश यादव की सक्रियता ने बिहार चुनावी समीकरणों को और दिलचस्प बना दिया है।






















