बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी बढ़ चुकी है। दो चरणों में होने वाले मतदान – 6 और 11 नवंबर – को देखते हुए सभी दल अपनी रणनीति को अंतिम रूप दे रहे हैं। लेकिन महागठबंधन (INDI गठबंधन) के भीतर अब भी सबसे बड़ा सवाल यही है कि मुख्यमंत्री पद का चेहरा कौन होगा। RJD प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को अब तक इस भूमिका के स्वाभाविक दावेदार के तौर पर देखा जा रहा था, लेकिन कांग्रेस नेता उदित राज के बयान ने सियासी गणित बदलने के संकेत दे दिए हैं।
उदित राज ने एक इंटरव्यू में कहा कि INDI गठबंधन ने अभी तक मुख्यमंत्री उम्मीदवार तय नहीं किया है। उनके मुताबिक कि तेजस्वी यादव आरजेडी के चेहरे हैं, लेकिन इंडिया गठबंधन का सीएम कैंडिडेट सामूहिक रूप से तय किया जाएगा। उनके इस बयान ने न केवल कांग्रेस की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया है कि महागठबंधन के भीतर अब भी कई मतभेद बाकी हैं।
हालांकि माना जा रहा है कि यह बयान कांग्रेस की ओर से दबाव की राजनीति का हिस्सा हो सकता है। बिहार में कांग्रेस की स्थिति कमजोर जरूर है, लेकिन गठबंधन की सीटों की साझेदारी और नेतृत्व पर वह अपनी भूमिका बनाए रखना चाहती है। ऐसे में उदित राज का यह वक्तव्य तेजस्वी यादव के लिए एक राजनीतिक संकेत भी माना जा सकता है कि सब कुछ अभी तय नहीं हुआ है।
आरजेडी खेमे में इस बयान को लेकर हलचल तेज हो गई है। पार्टी के भीतर कई नेता यह मानते हैं कि जनता के बीच तेजस्वी यादव की लोकप्रियता और हाल के उपचुनावों में उनका प्रदर्शन उन्हें गठबंधन का चेहरा बनाए जाने के लिए पर्याप्त आधार देता है। वहीं कांग्रेस चाहती है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर चर्चा पार्टी हाईकमान के स्तर पर हो, ताकि उसकी राजनीतिक हिस्सेदारी को नजरअंदाज न किया जाए।
बिहार के सियासी गलियारों में अब यह चर्चा जोरों पर है कि क्या महागठबंधन में सब कुछ वैसा ही है जैसा बाहर से दिखता है। क्या कांग्रेस, आरजेडी के नेतृत्व को पूरी तरह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है? या फिर यह सब चुनावी रणनीति का हिस्सा है, जिससे आखिरी वक्त में किसी बड़े समझौते की जमीन तैयार की जा सके?
चुनाव की तारीख नजदीक है, लेकिन महागठबंधन में चेहरे की राजनीति अब तक अनसुलझी है। तेजस्वी यादव के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे न केवल जनता के बीच अपने नेतृत्व की स्वीकार्यता बनाए रखें, बल्कि गठबंधन के भीतर भी भरोसे का माहौल कायम कर सकें। कांग्रेस के इस रुख ने बिहार के चुनावी माहौल को और भी दिलचस्प बना दिया है।






















