Bihar Vidhan Sabha Chunav History: बिहार की राजनीति की तस्वीर हर विधानसभा चुनाव के बाद बदलती रही है। 2005 से लेकर 2020 तक के नतीजों पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि कौन-सी पार्टी मजबूत होती गई और किसका जनाधार लगातार सिकुड़ता गया। चुनावी आंकड़े यह भी बताते हैं कि बिहार में गठबंधन राजनीति का खेल कितना अहम है और कैसे मतदाताओं का रुझान वक्त के साथ बदलता रहा है।
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2005 के चुनाव में एनडीए ने बड़ा धमाका किया था। भाजपा और जदयू की जोड़ी ने सत्ता का समीकरण बदल दिया और कांग्रेस-राजद गठबंधन यानी यूपीए को करारी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को 55 सीटें और जदयू को 88 सीटें मिलीं। राजद जो 90 के दशक से सत्ता पर काबिज रही थी, सिर्फ 54 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस की हालत और भी खराब रही और उसे महज 9 सीटों से संतोष करना पड़ा।
2010 का चुनाव नीतीश कुमार और जदयू के लिए सुनहरा साबित हुआ। जदयू को 115 सीटें मिलीं, भाजपा ने 91 सीटें जीतीं और इस तरह एनडीए का दबदबा कायम रहा। राजद महज 22 सीटों तक सिमट गई, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 4 सीटें मिलीं। इस चुनाव ने बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार की पकड़ को और मजबूत कर दिया।
2015 का चुनाव हालांकि पूरी तरह से अलग तस्वीर लेकर आया। महागठबंधन (राजद-जदयू-कांग्रेस) ने भाजपा और उसके सहयोगियों को कड़ी शिकस्त दी। राजद को 80 सीटें मिलीं और वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। जदयू ने 71 सीटें और कांग्रेस ने 27 सीटें जीतीं। भाजपा को सिर्फ 53 सीटें हासिल हो सकीं। इस नतीजे ने यह साबित किया कि बिहार में गठबंधन की राजनीति ही चुनावी सफलता की कुंजी है।
2020 का चुनाव फिर से करवट बदल गया। इस बार जदयू और भाजपा ने साथ मिलकर मैदान में उतरे। हालांकि भाजपा 74 सीटों के साथ बड़ी पार्टी बनी और जदयू 43 सीटों पर सिमट गई। राजद ने 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ा दल तो बना लेकिन सत्ता से दूर रह गई। कांग्रेस का ग्राफ और नीचे गिर गया और उसे सिर्फ 19 सीटें मिलीं। एनडीए को कुल 125 सीटों के साथ बहुमत मिला और नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
इन नतीजों से साफ है कि बिहार की राजनीति में न तो कोई स्थायी विजेता है और न ही स्थायी हारने वाला। गठबंधन, जातीय समीकरण और जनाधार में बदलाव हर बार नई तस्वीर पेश करता है। जहां भाजपा धीरे-धीरे अपनी जड़ें मजबूत करती नजर आ रही है, वहीं राजद लगातार मुख्य विपक्ष की भूमिका निभा रहा है। नीतीश कुमार के लिए जदयू की सीटों में गिरावट चिंता का विषय है, जबकि कांग्रेस का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है।
अब जब बिहार चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या राजद सत्ता की दहलीज तक पहुंच पाएगा, क्या भाजपा एकल शक्ति के रूप में उभरेगी, या फिर नीतीश कुमार का अनुभव एक बार फिर काम आएगा। बीते 15 सालों का इतिहास यही बताता है कि बिहार का मतदाता हर बार नया गणित गढ़ता है और यही इसकी राजनीति को सबसे दिलचस्प बना देता है।






















