बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election) के बाद कांग्रेस पार्टी में गहरी चिंतन-मंथन की स्थिति बन गई है। राज्य में मिली करारी हार ने न केवल महागठबंधन की शक्ति को कमजोर किया है, बल्कि कांग्रेस की संगठनात्मक क्षमता और रणनीति पर भी बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। वरिष्ठ कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह ने बुधवार को इस बात को स्वीकार किया कि पार्टी को मिले परिणाम किसी भी नेता या कार्यकर्ता की उम्मीदों के बिल्कुल विपरीत थे। 61 सीटों पर मैदान में उतरी कांग्रेस महज 6 सीटें जीत पाई, जो उसके हालिया राजनीतिक इतिहास का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन माना जा रहा है।
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अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि जनता के भीतर नाराज़गी महसूस हो रही है और इस नाराज़गी के पीछे कई कारण हैं। उन्होंने बताया कि पार्टी द्वारा शीर्ष स्तर पर समीक्षा की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जिसमें हर चरण, हर उम्मीदवार और हर निर्णय पर विस्तार से चर्चा की जाएगी। उन्होंने साफ कहा कि कांग्रेस अब यह समझने की कोशिश कर रही है कि इतनी बड़ी चूक कहां हुई और भविष्य में किस तरह के सुधार की आवश्यकता है। हर सुझाव और सिफारिश को राष्ट्रीय नेतृत्व के सामने रखा जाएगा, जिसके बाद ही आगे की रणनीति तय होगी।
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यह चुनाव इसलिए भी खास रहा क्योंकि एनडीए की प्रचंड लहर ने पूरे बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को हिला कर रख दिया। बीजेपी 89 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई, जबकि जेडीयू ने 85 सीटें जीतकर मजबूत प्रदर्शन दिखाया। एनडीए के अन्य सहयोगियों ने भी शानदार प्रदर्शन किया, जिसने मिलकर सत्तारूढ़ गठबंधन को 243 में से 202 सीटों तक पहुंचा दिया। तीन-चौथाई से अधिक बहुमत हासिल करने वाला यह सिर्फ दूसरा मौका है जब एनडीए ने बिहार में 200 के पार का आंकड़ा छुआ हो। इससे पहले 2010 में उसने 206 सीटें हासिल की थीं।





















