बिहार सरकार भ्रष्टाचार (Bihar Corruption Crackdown) के खिलाफ अपनी मुहिम को अब निर्णायक मोड़ पर ले जाने की तैयारी में है। सिर्फ छापेमारी और गिरफ्तारी तक सीमित रहने के बजाय अब सरकार की रणनीति सजा तक की प्रक्रिया को तेज करने की है, ताकि भ्रष्ट लोकसेवकों को जल्द से जल्द कानूनी अंजाम तक पहुंचाया जा सके। इसी दिशा में निगरानी अन्वेषण ब्यूरो के भीतर दो नए विशेष कोषांग बनाने की योजना पर काम शुरू हो गया है। एक कोषांग भ्रष्टाचार के मामलों में स्पीडी ट्रायल सुनिश्चित करेगा, जबकि दूसरा भ्रष्ट पदाधिकारियों और कर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही को तेज गति से पूरा कराने पर फोकस करेगा।
सरकार का मानना है कि जब तक मामलों का निपटारा वर्षों तक चलता रहेगा, तब तक भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाना मुश्किल है। अक्सर देखा गया है कि कार्रवाई के बाद आरोपी लंबे समय तक कानूनी प्रक्रिया का लाभ उठाते हैं और कई मामलों में सजा सुनाए जाने से पहले ही आरोपी या शिकायतकर्ता की मृत्यु हो जाती है। इसी कमजोरी को दूर करने के लिए अब दोतरफा कार्रवाई की नीति अपनाई जा रही है, जिसमें एक ओर अदालत में तेज सुनवाई होगी और दूसरी ओर विभागीय स्तर पर भी तत्काल फैसला लिया जाएगा। इसका उद्देश्य न केवल दोषियों को सजा दिलाना है, बल्कि पूरे सिस्टम को कड़ा संदेश देना भी है कि भ्रष्टाचार अब महंगा सौदा साबित होगा।
आवास विवाद : जेडीयू सांसद देवेश चंद्र ठाकुर का बड़ा पलटवार.. RJD पर मानहानि केस का ऐलान
निगरानी ब्यूरो के महानिदेशक जितेंद्र सिंह गंगवार ने बुधवार को प्रेस वार्ता के दौरान इस नई पहल की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बीते एक साल में निगरानी विभाग ने भ्रष्टाचार के मामलों में ऐतिहासिक स्तर पर कार्रवाई की है। वर्ष 2024 में कुल 122 मामलों में कार्रवाई की गई, जिनमें सबसे अधिक 101 मामले रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़े जाने से जुड़े रहे। इसके अलावा 15 मामले आय से अधिक संपत्ति और सात मामले पद के दुरुपयोग से संबंधित रहे। पिछले 25 वर्षों के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो यह साल कार्रवाई के लिहाज से सबसे सक्रिय और प्रभावशाली माना जा रहा है।
बिहार में सरकारी सेवकों के भ्रष्ट आचरण पर लगाम लगाने में निगरानी विभाग की भूमिका लगातार मजबूत हुई है। शिकायत मिलते ही ट्रैपिंग की कार्रवाई, छापेमारी और अवैध संपत्ति के खुलासे तेजी से किए जाते हैं। पुलिस और राजस्व विभाग में सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं, जो यह संकेत देते हैं कि आम नागरिकों का सीधा सामना इन्हीं विभागों से होता है। हालांकि अब तक सबसे बड़ी चुनौती यही रही है कि कार्रवाई के बाद सजा मिलने में वर्षों लग जाते हैं। सरकार का नया प्लान इसी देरी को खत्म करने पर केंद्रित है।






















