Dhaka Vidhan Sabha : बिहार की ढाका विधानसभा सीट (क्रम संख्या 21) पूर्वी चंपारण जिले के तहत आती है और शिवहर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। 2008 में परिसीमन आयोग की सिफारिश के बाद इसमें ढाका और घोरासाहन सामुदायिक विकास खंड शामिल किए गए। इस सीट का राजनीतिक इतिहास बेहद रोचक रहा है। कभी यह कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था, लेकिन समय के साथ यहां समीकरण बदले और अब यह भाजपा के पास है। वर्तमान में भाजपा के पवन कुमार जायसवाल यहां के विधायक हैं।
राजनीतिक इतिहास
ढाका विधानसभा में कांग्रेस ने सबसे ज्यादा छह बार जीत दर्ज की है। 1952 से 1985 तक कांग्रेस के मसउदुर रहमान, हाफीज इद्रीस अंसारी और मोतीउर्रहमान ने लगातार यहां अपनी पकड़ बनाए रखी। 1962 में सीपीआई के नेक मोहम्मद, 1967 में पीएसपी के सत्यनारायण शर्मा और 1977 में जेएनपी के सियाराम ठाकुर ने कांग्रेस को मात दी। हालांकि, इसके बाद कांग्रेस लंबे समय तक इस सीट पर प्रभावी रही।
1990 के दशक और उसके बाद ढाका की राजनीति में राजद और भाजपा का दबदबा बढ़ा। 2010 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पवन कुमार जायसवाल ने जीत हासिल कर सभी को चौंका दिया। 2015 में राजद के फैसल रहमान ने बाजी मारी और पवन कुमार को 19,197 वोटों से हराया। लेकिन 2020 में पवन कुमार जायसवाल भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीतकर विधानसभा पहुंचे। उन्हें 99,792 (48.01%) वोट मिले जबकि राजद के फैसल रहमान 89,678 (43.15%) वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे।
जातीय समीकरण
ढाका विधानसभा का जातीय और सामाजिक समीकरण चुनावी परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित करता है। यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 32% है, जो जीत-हार का संतुलन तय करते हैं। इसके अलावा रविदास और पासवान समुदाय भी बड़ी संख्या में हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां 9.95% एससी और 0.07% एसटी मतदाता हैं। ग्रामीण मतदाता करीब 91.47% और शहरी मतदाता 8.53% हैं।
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ढाका की राजनीति का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि यहां हर बार मुकाबला कड़ा और बहुकोणीय रहा है। 2010 से 2020 तक भाजपा और राजद के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली। कांग्रेस जो कभी इस सीट की धुरी थी, अब हाशिये पर खड़ी है। मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या और दलित समुदाय की उपस्थिति इस सीट को हर चुनाव में सियासी प्रयोगशाला बना देती है।
आगामी चुनाव में भी ढाका विधानसभा सीट पर मुकाबला रोचक रहने की संभावना है। भाजपा अपने मौजूदा विधायक के दम पर सीट बचाने की कोशिश करेगी, वहीं राजद इसे दोबारा हासिल करने के लिए पूरी ताकत लगाएगी। कांग्रेस यहां फिर से वापसी की कोशिश कर सकती है, लेकिन उसका प्रदर्शन तय करेगा कि वह महागठबंधन में कितनी मजबूत स्थिति में खड़ी है।






















