Cheria Bariarpur Vidhan Sabha 2025: बेगूसराय जिले की बछवाड़ा विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 142) बिहार की राजनीति में हमेशा चर्चा का विषय रही है। यह सीट एक सामान्य श्रेणी की सीट है और बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। ऐतिहासिक रूप से यह सीट कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच मुकाबले का केंद्र रही है। लंबे समय तक कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने यहां बारी-बारी से जीत दर्ज की, लेकिन समय के साथ राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव आया और अब यह सीट भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कब्जे में है।
चुनावी इतिहास
2010 के विधानसभा चुनाव में सीपीआई के अवधेश कुमार राय ने जीत दर्ज की थी। उन्हें 33,770 (26.0%) मत मिले थे, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार अरविंद कुमार सिंह 21,683 (16.7%) वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। एलजेपी की मीना कुमारी तीसरे स्थान पर रही थीं। यह चुनाव दर्शाता है कि बछवाड़ा में वामदलों का गहरा प्रभाव रहा है।
Cheria Bariarpur Vidhan Sabha 2025: जातीय समीकरण और राजनीतिक संघर्ष का गढ़
2015 का चुनाव महागठबंधन की एकता का परिणाम साबित हुआ। कांग्रेस, राजद और जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा और कांग्रेस प्रत्याशी रामदेव राय ने जीत हासिल की। एलजेपी के अरविंद कुमार सिंह दूसरे और सीपीआई तीसरे स्थान पर रही। इस चुनाव ने यह स्पष्ट कर दिया कि यदि विपक्षी दल एकजुट हों तो बछवाड़ा का समीकरण पूरी तरह बदल सकता है।
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2020 का विधानसभा चुनाव इस सीट के इतिहास में बेहद कड़ा मुकाबला साबित हुआ। भाजपा के सुरेंद्र मेहता ने सीपीआई के दिग्गज उम्मीदवार अवधेश कुमार राय को केवल 484 वोटों के मामूली अंतर से मात दी। सुरेंद्र मेहता को 54,738 (30.21%) वोट मिले, जबकि अवधेश कुमार राय को 54,254 (29.94%) वोट मिले। युवा क्रांतिकारी पार्टी के अखिलेश कुमार को 4,477 (2.47%) वोट मिले। यह परिणाम इस बात का प्रमाण है कि बछवाड़ा सीट पर छोटे-से-छोटे वोटों का अंतर भी सत्ता बदल सकता है।
जातीय समीकरण
यदि जातीय समीकरण की बात करें तो बछवाड़ा विधानसभा में मुस्लिम और यादव वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है और यही वर्ग चुनावी राजनीति का केंद्र बिंदु माना जाता है। इनके साथ ब्राह्मण और राजपूत मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि यहां का हर चुनाव जातीय समीकरण और गठबंधन की मजबूती पर आधारित होता है।
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आगामी 2025 के चुनावों में बछवाड़ा विधानसभा सीट पर फिर से दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है। भाजपा अपनी जीत को दोहराने की कोशिश करेगी, वहीं वामपंथी दल और कांग्रेस इस सीट को वापस पाने के लिए नए समीकरण बनाने में जुटेंगे। इस बार भी जातीय संतुलन, गठबंधन की रणनीति और प्रत्याशियों की व्यक्तिगत पकड़ ही तय करेगी कि जनता किसके पक्ष में जनादेश देती है।






















