Bihar Election 2025: बिहार की सियासत एक बार फिर ‘अति पिछड़ा वर्ग’ यानी EBC (Extremely Backward Class) के इर्द-गिर्द घूमती दिख रही है। विधानसभा चुनाव से पहले जहां महागठबंधन (RJD, कांग्रेस, वाम दल) ने EBC वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए अलग से घोषणा पत्र जारी किया, वहीं अब एनडीए (NDA) ने भी उसी वर्ग को साधने की रणनीति पर बड़ा दांव चल दिया है। सम्राट चौधरी की अगुआई में एनडीए ने जो ‘संकल्प पत्र’ पेश किया है, उसमें EBC के आर्थिक उत्थान, शिक्षा, आरक्षण और सम्मान की बातों पर खास ध्यान दिया गया है।
बिहार में करीब 36 फीसदी आबादी वाले इस वर्ग की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बिना इनके समर्थन के कोई भी दल सत्ता की चौखट तक नहीं पहुंच सकता। यही वजह है कि इस चुनाव में EBC वर्ग ‘किंगमेकर’ बन गया है।
एनडीए ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि अति पिछड़ा वर्ग के युवाओं को 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी जाएगी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाएगी जो इस वर्ग की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अध्ययन कर सरकार को सिफारिशें देगी। यह समिति यह तय करेगी कि किस तरह से EBC को मुख्यधारा में लाया जाए और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार किया जा सके।
एनडीए ने इस घोषणा के जरिए यह संकेत दे दिया है कि वह अब उन जातियों पर फोकस करेगी जिन्हें नीतीश कुमार के पारंपरिक समर्थन का आधार माना जाता रहा है — जैसे केवट, नोनिया, मल्लाह, कुम्हार, कहार, धानुक, लुहार, नाई, रैकवार, बाथम और प्रजापति जैसी जातियां।
इसी के समानांतर, महागठबंधन ने पहले ही EBC के लिए अलग घोषणा पत्र जारी कर इस वर्ग में सेंध लगाने की कोशिश की थी। तेजस्वी यादव ने निषाद समाज से आने वाले मुकेश सहनी को डिप्टी सीएम का चेहरा बनाकर यह संदेश दिया कि महागठबंधन अब सिर्फ यादव-मुस्लिम समीकरण पर निर्भर नहीं रहेगा, बल्कि अति पिछड़ों को अपने साथ जोड़ने की नई सामाजिक इंजीनियरिंग तैयार करेगा।
महागठबंधन ने अपने वादों में 30 फीसदी आरक्षण, 5 डेसिमल ज़मीन, निजी स्कूलों और ठेकों में EBC आरक्षण जैसी घोषणाएं की हैं। वहीं, एनडीए ने जवाब में आर्थिक सहायता, समिति गठन और कर्पूरी ठाकुर सम्मान निधि जैसी योजनाओं के जरिए पलटवार किया है।
दरअसल, बिहार की सत्ता की असली चाबी अब इसी वर्ग के पास है। पिछले दो दशकों से नीतीश कुमार इसी EBC फैक्टर के दम पर सत्ता में बने रहे हैं। लेकिन इस बार महागठबंधन ने इस ‘साइलेंट वोट बैंक’ को अपने पक्ष में मोड़ने की आक्रामक कोशिश शुरू की है।






















