Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों की घोषणा के बाद अब राजनीतिक दलों की नजरें उस वर्ग पर टिक गई हैं जो नतीजों का पूरा गणित बदल सकता है—‘Gen-Z’ वोटर्स। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, इस बार कुल 7.42 करोड़ मतदाताओं में से 20 से 29 वर्ष की आयु वाले युवाओं की संख्या 1.63 करोड़ है। इनमें 14.01 लाख मतदाता ऐसे हैं जो पहली बार मतदान करेंगे। यह युवा वर्ग इतना बड़ा है कि यह किसी भी गठबंधन की जीत-हार तय करने की क्षमता रखता है।
अब बड़ा सवाल यह है कि यह नई पीढ़ी किस नेता या विचार को अपनी पहली पसंद बनाएगी। क्या यह युवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘विकास’ और ‘नेतृत्व’ के ब्रांड पर भरोसा करेगी, या फिर प्रशांत किशोर (पीके) के “जन सुराज” अभियान और उनके स्वच्छ राजनीति के मॉडल को प्राथमिकता देगी? या तेजस्वी यादव की ‘युवा राजनीति’ और रोजगार-केंद्रित वादों पर भरोसा जताएगी?
पिछले एक दशक में पहली बार वोट करने वाले युवाओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी की छवि एक निर्णायक और प्रभावशाली नेता की रही है। ‘स्टार्टअप इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘स्किल इंडिया’ जैसी योजनाओं ने उनके प्रति भरोसा कायम किया है। बिहार जैसे राज्य में जहां बड़ी संख्या में युवा रोजगार और अवसरों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, वहां मोदी का “मजबूत भारत” का संदेश अब भी असरदार दिखता है।
लेकिन राज्य की राजनीति के स्तर पर तस्वीर थोड़ी अलग है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले दो दशकों से सत्ता में हैं, और नई पीढ़ी के लिए वे अब ‘पुरानी व्यवस्था’ का चेहरा बन चुके हैं। यही कारण है कि जेन-जेड मतदाता अब नई आवाजों की तलाश में हैं।
राजनीतिक रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर (पीके) ने बिहार में जन सुराज यात्रा के जरिए युवाओं के बीच एक अलग पहचान बनाई है। वे भ्रष्टाचार, शिक्षा व्यवस्था की गिरावट और रोजगार की कमी जैसे मुद्दों को लगातार उठा रहे हैं। पीके ने अपने अभियान को ‘जनता बनाम व्यवस्था’ के रूप में पेश किया है, जो युवा मतदाताओं को आकर्षित कर रहा है। हालांकि यह देखना बाकी है कि क्या यह समर्थन वोटों में बदल पाएगा या नहीं।
तेजस्वी यादव भी इस चुनाव में युवा वर्ग पर खास फोकस कर रहे हैं। उन्होंने बेरोजगारी, शिक्षक भर्ती और युवाओं के पलायन जैसे मुद्दों को अपनी राजनीति का केंद्र बनाया है। उनका सोशल मीडिया कैंपेन युवाओं को सीधे जोड़ने पर केंद्रित है। साथ ही पारंपरिक मुस्लिम-यादव समीकरण को बनाए रखने की उनकी रणनीति भी निर्णायक साबित हो सकती है।
बिहार की सियासत इस बार परंपरागत जातीय गणित से हटकर युवाओं के मुद्दों के इर्द-गिर्द घूम रही है। शिक्षा, रोजगार, तकनीकी अवसर और राज्य में रहने योग्य माहौल जैसे विषय अब प्रमुख हो चुके हैं। माना जा रहा है कि बिहार के ‘Gen-Z’ मतदाता इस बार किसी दल या जाति नहीं, बल्कि ठोस विकास और रोजगार के आधार पर वोट करेंगे।
इसलिए कहा जा सकता है कि बिहार चुनाव 2025 में नतीजे सिर्फ गठबंधनों के समीकरण से तय नहीं होंगे, बल्कि यह इस बात पर निर्भर करेंगे कि कौन-सा नेता इस नई पीढ़ी के दिलों में जगह बना पाता है—मोदी का राष्ट्रीय विजन, तेजस्वी की स्थानीय अपील या पीके की वैकल्पिक राजनीति।