बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2025) की रणभेरी बज चुकी है, लेकिन महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-वाम दल) अब भी सीट बंटवारे की गुत्थी में उलझा हुआ है। चुनावी नामांकन की अंतिम तिथि के बाद भी कई सीटों पर मतभेद बने रहने से गठबंधन की एकता पर सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में कांग्रेस अब डैमेज कंट्रोल मोड में दिखाई दे रही है। पार्टी ने अपने सीनियर ऑब्जर्वर और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पटना भेजने का फैसला लिया है। गहलोत बुधवार सुबह पटना पहुंचेंगे और तेजस्वी यादव से मुलाकात कर इस सियासी तनाव को कम करने की कोशिश करेंगे।
सूत्रों के मुताबिक, 23 अक्टूबर को पटना में महागठबंधन की एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की जा सकती है, जिसमें सीटों पर अंतिम सहमति का ऐलान किया जाएगा। यह मुलाकात कांग्रेस और आरजेडी के बीच बढ़ती दूरी को कम करने की दिशा में एक बड़ा राजनीतिक प्रयास मानी जा रही है।
बिहार में महागठबंधन के कुल 251 उम्मीदवार मैदान में हैं — जिनमें आरजेडी के 143, कांग्रेस के 60, सीपीआई-एमएल के 20, सीपीआई के 9, सीपीएम के 4 और वीआईपी पार्टी के 15 उम्मीदवार शामिल हैं। लेकिन इतनी लंबी सूची के बावजूद गठबंधन में सामंजस्य की कमी साफ दिखाई दे रही है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अब भी 10 से अधिक सीटों पर सहमति नहीं बन पाई है। कई सीटों पर तो महागठबंधन के दो-दो उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल कर दिया है, जिससे सियासी टकराव की स्थिति बन गई है। सुल्तानगंज, कहलगांव, सिकंदरा और नरकटियागंज जैसी सीटों पर आरजेडी और कांग्रेस के बीच सीधी भिड़ंत है। वहीं चैनपुर और बाबूबरही सीटों पर आरजेडी और वीआईपी आमने-सामने हैं। इतना ही नहीं, बछवाड़ा, करगहर, बिहारशरीफ और राजापाकर में कांग्रेस और वामदलों के बीच भी टकराव की स्थिति बनी हुई है।
यह तस्वीर इस बात की गवाह है कि महागठबंधन में समन्वय की कमी चुनाव से ठीक पहले सामने आ गई है। कांग्रेस की अंदरूनी असंतोष और आरजेडी की नेतृत्व शैली को लेकर कई नेताओं ने असहमति जताई है। कुछ सीटों पर स्थानीय कार्यकर्ताओं ने बगावत के संकेत भी दिए हैं। यही कारण है कि अब कांग्रेस को स्थिति संभालने के लिए अपने वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत को आगे करना पड़ा है।