बिहार में 2025 विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज़ होती जा रही हैं और महागठबंधन (राजद, कांग्रेस, वाम दल, VIP आदि) के भीतर बैठकों का दौर जारी है। 12 जून को महागठबंधन की चौथी बैठक होने जा रही है, जिसकी मेज़बानी खुद तेजस्वी यादव उनके सरकारी आवास पर करेंगे। इस बैठक को लेकर जितनी उम्मीदें हैं, उतनी ही आशंकाएं भी।
पहली बैठक में बने थे चेयरमैन, अब परीक्षा की घड़ी
याद करें तो महागठबंधन की पहली बैठक में तेजस्वी यादव को को-ऑर्डिनेशन कमेटी का अध्यक्ष चुना गया था। यह फैसला सभी दलों ने एकमत से लिया था। लेकिन अब जब सीट शेयरिंग की बारी आई है, तो महागठबंधन के भीतर मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं।
सहनी की ‘साठ’ पर सियासत गरम
वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी ने 60 सीटों की मांग के साथ-साथ डिप्टी सीएम पद की दावेदारी भी दोहराई है। इतना ही नहीं, उन्होंने नरेंद्र मोदी के समर्थन में आरक्षण मिलने पर प्राण देने जैसी बयानबाज़ी कर गठबंधन के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है।
लेफ्ट का ‘लाल’ गणित
वहीं, CPI-ML के नेता दीपांकर भट्टाचार्य ने महागठबंधन के अंदर अपनी ताकत दिखाते हुए 45 सीटों की मांग रख दी है। पिछली बार वाम दलों ने 16 सीटें जीतकर चौंकाया था, लेकिन क्या अब 45 सीटें वाजिब मांग मानी जाएगी?
राजद-कांग्रेस की ‘सीटों’ की सोच
महागठबंधन में अगर VIP को 60 और वाम दलों को 45 सीटें मिलती हैं, तो अकेले इन दो घटकों के पास 105 सीटें हो जाएंगी। ऐसे में राजद — जो खुद 140 से कम सीटों पर समझौते के मूड में नहीं — कैसे एडजस्ट करेगी? उधर, कांग्रेस भी 70 से कम सीटों पर मानने को तैयार नहीं दिखती।
क्या महागठबंधन बिखरने की कगार पर है?
अगर इन मांगों को तेजस्वी मान लेते हैं, तो गठबंधन में असंतुलन आ सकता है। और अगर नहीं मानते, तो छोटे दलों का बगावत करना तय माना जा रहा है। यह बैठक महज सीटों की नहीं, भविष्य की राजनीति की दिशा तय करने वाली होगी।