Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 केवल सत्ता की जंग नहीं बल्कि तीन प्रमुख राजनीतिक ध्रुवों- जेडीयू, आरजेडी और बीजेपी की रणनीतिक परीक्षा भी बन गया है। चुनाव आयोग द्वारा सोमवार को तारीखों की घोषणा के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि इस बार की प्रक्रिया अब तक की सबसे छोटी चुनावी कवायद होगी। 2020 में तीन चरणों, 2015 में पांच और 2010 में छह चरणों में मतदान हुआ था, लेकिन इस बार केवल दो चरणों (6 और 11 नवंबर) में ही मतदान संपन्न होगा। परिणाम 14 नवंबर को आएंगे।
यह चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए अग्निपरीक्षा साबित हो सकता है। लगातार बदलते राजनीतिक समीकरणों के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे फिर से जनता के बीच अपनी साख बहाल कर पाते हैं या नहीं। वहीं, विपक्षी नेता तेजस्वी यादव के लिए भी यह मौका है यह साबित करने का कि वे अब एक परिपक्व नेता बन चुके हैं और जनता उन्हें विकल्प के रूप में देखती है।
जेडीयू की घटती पकड़, लेकिन बरकरार भूमिका
पिछले तीन विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो जेडीयू की ताकत लगातार घटती रही है, लेकिन उसका राजनीतिक महत्व बना हुआ है। 2010 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में पार्टी ने 115 सीटें जीती थीं और बिहार में सुशासन का चेहरा बनकर उभरी थी। बीजेपी के साथ गठबंधन ने तब 206 सीटें हासिल कीं और आरजेडी लगभग हाशिए पर चली गई थी।
हालांकि 2015 में तस्वीर बदल गई। नीतीश ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर महागठबंधन बनाया और 178 सीटों की शानदार जीत दर्ज की। लेकिन यह साथ ज्यादा दिन नहीं चला। 2020 के चुनाव में वे फिर एनडीए के साथ लौटे, पर इस बार जेडीयू तीसरे स्थान पर रही। जदयू को 43 सीटें मिलीं और 15.39% वोट शेयर रहा। बीजेपी 74 सीटों के साथ उनसे आगे निकल गई।
2020 के बाद नीतीश की राजनीतिक यात्रा और गठबंधन फेरबदल
2020 के बाद बिहार की राजनीति नीतीश कुमार के ‘यू-टर्न’ से लगातार सुर्खियों में रही। पहले उन्होंने एनडीए छोड़ा, फिर महागठबंधन में गए, और 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले दोबारा बीजेपी के साथ लौट आए। इस दौरान नीतीश ने खुद को सत्ता के संतुलन बिंदु पर बनाए रखा। लोकसभा चुनाव में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने 12-12 सीटें जीतकर मजबूत प्रदर्शन किया, जिससे एनडीए को राज्य में 174 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली।
तेजस्वी यादव की कसौटी और नई पीढ़ी की राजनीति
तेजस्वी यादव के सामने भी यह चुनाव एक बड़ा इम्तिहान है। महागठबंधन में टूट के बाद आरजेडी के लिए संगठनात्मक और रणनीतिक चुनौतियां बढ़ी हैं। वे अब यह साबित करना चाहते हैं कि वे सिर्फ ‘लालू यादव के वारिस’ नहीं बल्कि एक स्वतंत्र राजनीतिक व्यक्तित्व हैं। उनके लिए युवा मतदाताओं को साधना अहम होगा। पिछली बार आरजेडी को 23.11% वोट शेयर और 75 सीटें मिली थीं, जो उन्हें सबसे बड़ी पार्टी बनाती हैं, लेकिन सत्ता नहीं दिला पाईं।
बीजेपी के लिए भी कठिन परीक्षा
बीजेपी के लिए भी यह चुनाव आसान नहीं होगा। एक ओर उसे अपने वरिष्ठ सहयोगी नीतीश कुमार के साथ तालमेल बनाए रखना है, दूसरी ओर आंतरिक असंतोष और क्षेत्रीय समीकरणों को संतुलित करना है। पार्टी 2020 में वोट शेयर के लिहाज से सबसे आगे रही थी, लेकिन सीटों में जेडीयू को सत्ता का नेतृत्व देना पड़ा। इस बार पार्टी राज्य में अपने ‘स्वतंत्र नेतृत्व’ के संदेश के साथ उतर सकती है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और जनता का मूड
2025 का चुनाव जातीय समीकरणों और शासन के मुद्दों पर आधारित होगा। बेरोजगारी, शिक्षा, कानून व्यवस्था और ग्रामीण बुनियादी ढांचे के मुद्दे इस बार फिर से चर्चा में रहेंगे। लोकसभा चुनाव में एनडीए की मजबूती ने उसे प्रारंभिक बढ़त दी है, लेकिन बिहार की राजनीति अक्सर उम्मीदों से उलट परिणाम देती रही है।