बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election 2025) जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं, सूबे की सियासत में नए समीकरण बनते और बिगड़ते नज़र आ रहे हैं। एनडीए और महागठबंधन, दोनों खेमों के अंदर सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है। एक ओर जहां एनडीए के भीतर जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे वरिष्ठ नेता अपनी पसंदीदा सीटें न मिलने से नाराज़ दिखे, वहीं अब उपेंद्र कुशवाहा ने संकेत दिया है कि सब कुछ “ठीक” हो गया है। लेकिन इस बीच सबसे बड़ा सियासी उलटफेर किया है पशुपति कुमार पारस ने।

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी न तो एनडीए का हिस्सा बनेगी और न ही महागठबंधन में शामिल होगी। इसके बजाय उन्होंने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ चुनावी मैदान में उतरने का ऐलान कर दिया है। इस घोषणा के साथ बिहार की राजनीति में तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट तेज हो गई है।
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बिहार की राजनीति में यह पहली बार नहीं है जब कोई तीसरा मोर्चा चर्चा में आया हो। हाल ही में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने भी प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। लेकिन पशुपति पारस और ओवैसी का गठजोड़ उस समीकरण को और जटिल बना देता है क्योंकि इसमें जाति और धर्म आधारित वोट बैंक की गणना पूरी तरह बदल सकती है।






















