Bihar Election 2025 Survey: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों की घोषणा होते ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इस बार राज्य में दो चरणों में मतदान होगा, पहला 6 नवंबर और दूसरा 11 नवंबर को। 14 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे। अब जब चुनावी शंखनाद हो चुका है, सभी की नजरें इस सवाल पर टिक गई हैं कि आखिर सत्ता की कुर्सी पर कौन बैठेगा- नीतीश, तेजस्वी या कोई और? इसी बीच MATRIZE-IANS का ओपिनियन पोल सामने आया है, जिसने बिहार की सियासत में नई बहस छेड़ दी है।
सर्वे के मुताबिक एनडीए को 49 प्रतिशत वोट शेयर मिलने का अनुमान है, जबकि महागठबंधन को 36 प्रतिशत और अन्य दलों को 15 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं। सीटों के लिहाज से यह अनुमान लगाया गया है कि एनडीए को 150 से 160 सीटें, महागठबंधन को 70 से 85 सीटें और अन्य को 9 से 12 सीटें मिल सकती हैं। इसका मतलब साफ है कि बिहार में एनडीए को एक बार फिर स्पष्ट बहुमत मिल सकता है।
बीजेपी इस बार भी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है। सर्वे के अनुसार बीजेपी को 80-85 सीटें, जेडीयू को 60-65 सीटें, आरजेडी को 60-65 सीटें, हम पार्टी को 3-6 सीटें, एलजेपी (रामविलास) को 4-6 सीटें, कांग्रेस को 7-10, जबकि भाकपा-माले को 6-9 सीटें मिलने का अनुमान है। शेष सीटें अन्य दलों के खाते में जा सकती हैं।
अगर यह आंकड़े सही साबित हुए, तो बीजेपी न केवल एनडीए के भीतर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी, बल्कि नीतीश कुमार की जेडीयू की भूमिका भी सीमित हो सकती है। हालांकि मुख्यमंत्री पद का चेहरा फिलहाल नीतीश ही हैं, लेकिन बीजेपी का बढ़ता ग्राफ यह संकेत दे रहा है कि राज्य की सत्ता समीकरण अब उनके पुराने दौर से अलग हो चुके हैं।
वहीं तेजस्वी यादव के लिए यह चुनाव जीवन का सबसे बड़ा मौका है। 2020 के चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी, लेकिन सत्ता से बाहर रह गई। अब वे यह साबित करना चाहते हैं कि वे केवल विरोध नहीं, बल्कि शासन की विश्वसनीय ताकत भी बन सकते हैं। उनके सामने संगठन को एकजुट रखने और युवा वोटरों को अपनी तरफ खींचने की दोहरी चुनौती है।
नीतीश कुमार के लिए यह चुनाव उनकी राजनीतिक यात्रा का निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। एनडीए और महागठबंधन के बीच कई बार पाला बदलने के कारण उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं। लेकिन अब वे बीजेपी के साथ मिलकर सत्ता में वापसी को दोहराना चाहते हैं। सर्वे के अनुसार, जनता अभी भी उन्हें एक स्थिर नेता के रूप में देखती है, खासकर ग्रामीण और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं में उनका आधार बना हुआ है।
बीते चुनावों का इतिहास बताता है कि बिहार की राजनीति हमेशा अप्रत्याशित परिणाम देती है। 2020 में जहां एनडीए मामूली अंतर से आगे रहा, वहीं इस बार भाजपा की रणनीतिक पकड़ और केंद्र सरकार के सहयोग से चुनावी हवा उसके पक्ष में दिख रही है। दूसरी ओर, महागठबंधन में सामंजस्य की कमी और छोटे दलों की नाराजगी उसके लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है।
बिहार चुनाव 2025 का यह सर्वे यह भी दिखाता है कि राज्य में पारंपरिक जातीय समीकरण अब धीरे-धीरे बदल रहे हैं। शहरी मतदाता रोजगार, शिक्षा और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दे रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि इस बार का चुनाव सिर्फ गठबंधन नहीं, बल्कि नेतृत्व की विश्वसनीयता और जनता के भरोसे की जंग बनने जा रहा है।






















