बिहार की राजनीति में तरैया विधानसभा सीट Taraiya Vidhansabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 116) हमेशा से ही सुर्खियों में रहती है। सारण जिले की यह सीट राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां का जातीय गणित और राजनीतिक इतिहास हर बार चुनावी माहौल को दिलचस्प बना देता है। 1967 में पहली बार यहां चुनाव हुए थे और अब तक 13 बार मतदाताओं ने अपने विधायक का चुनाव किया है।
चुनावी इतिहास
तरैया सीट पर अब तक सबसे अधिक जीत का रिकॉर्ड राजद (RJD) के नाम है। पार्टी ने तीन बार इस सीट पर कब्जा जमाया, जबकि भाजपा (BJP), कांग्रेस और जनता दल ने दो-दो बार जीत हासिल की। कांग्रेस का प्रभाव अब लगभग खत्म हो चुका है, क्योंकि आखिरी बार 1980 में उसे जीत नसीब हुई थी। लोजपा (LJP) को भी एक बार यहां जीत का स्वाद चखने का मौका मिला, हालांकि उसके विजेता उम्मीदवार जनक सिंह बाद में बीजेपी में शामिल हो गए और फिर लंबे समय तक इस सीट पर बीजेपी का चेहरा बने रहे।
Manjhi Vidhansabha 2025: बिहार की राजनीति का बदलता समीकरण, कांग्रेस से लेकर लेफ्ट तक का सफर
पिछले पांच विधानसभा चुनावों में तीन बार राजद को यहां जीत मिली है। 2015 का चुनाव खास रहा जब आरजेडी नेता मुद्रिका प्रसाद राय ने बीजेपी प्रत्याशी जनक सिंह को 20 हजार से ज्यादा मतों से हराकर सीट पर कब्जा जमाया था। लेकिन 2020 के चुनाव में समीकरण बदल गया और बीजेपी के जनक सिंह ने आरजेडी के सिपाही लाल महतो को 11,307 वोटों से मात देकर सीट भाजपा के खाते में डाल दी।
जातीय समीकरण
तरैया की राजनीतिक तस्वीर जातीय समीकरण से गहराई से जुड़ी हुई है। यहां यादव और राजपूत मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं और उनकी संख्या कुल मतदाताओं का लगभग 40 प्रतिशत मानी जाती है। यादव वोटरों के समर्थन ने ही RJD को यहां बार-बार जीत दिलाई है, जबकि राजपूत वोटरों का झुकाव अक्सर बीजेपी की ओर देखा गया है। इसके अलावा, अति पिछड़ा वर्ग भी इस क्षेत्र में बड़ा वोट बैंक है, जो किसी भी उम्मीदवार की जीत या हार तय कर सकता है।
2025 के चुनावी रण में एक बार फिर से तरैया विधानसभा सीट पर RJD और BJP के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। यादव-राजपूत समीकरण और अति पिछड़ा वर्ग का रुझान इस बार भी तय करेगा कि मतदाता किसके पक्ष में फैसला सुनाते हैं।