पश्चिम चंपारण की धरती पर बसा सिकटा विधानसभा क्षेत्र बिहार की उन चंद सीटों में से एक है, जहां हर पांच साल में जनता जनादेश बदल देती है। कभी कांग्रेस का गढ़ रही यह सीट अब वामपंथी लहर की गवाह बन चुकी है।
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सिकटा का इतिहास बताता है कि यहां 1962 के अलावा 1990 से पहले तक कांग्रेस का दबदबा रहा। फिर आया वह दौर जब जनता पार्टी, जनता दल और चंपारण विकास पार्टी जैसी विभिन्न राजनीतिक ताकतों ने अपनी पकड़ बनानी शुरू की। लेकिन सबसे ज्यादा रोचक रहा दिलीप वर्मा का सफर, जिन्होंने निर्दलीय, बीजेपी और समाजवादी पार्टी से लेकर चंपारण विकास पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।
2010 से 2020: हर बार नया चेहरा
2010 में निर्दलीय दिलीप वर्मा ने बाज़ी मारी। 2015 में जेडीयू के फिरोज अहमद ने भाजपा को शिकस्त दी और 2020 में वाम दल सीपीआईएमएल के वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता ने सभी को चौंकाते हुए जीत दर्ज की।
- 2020: वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता (सीपीआईएमएल) – 49,075 वोट
- 2015: फिरोज अहमद (जेडीयू) – 69,870 वोट
- 2010: दिलीप वर्मा (निर्दलीय) – 49,229 वोट
इस सीट पर मुस्लिम (30.2%) और यादव वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। साथ ही रविदास, कोइरी और ब्राह्मण समुदाय भी चुनावी गणित को प्रभावित करते हैं। 100% ग्रामीण आबादी वाली इस सीट पर जनसंख्या का बड़ा हिस्सा बाढ़ और कटाव की मार झेलता है। नेपाल से निकलने वाली पहाड़ी नदियों का कहर हर चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनता है। आवागमन की समस्या और मूलभूत सुविधाओं की कमी आज भी गंभीर चुनौती हैं।
क्या होगा 2025 में?
क्या वाम दल अपनी सीट बचा पाएंगे? क्या फिर दिलीप वर्मा अपनी सियासी पकड़ दिखाएंगे? या भाजपा-कांग्रेस नए समीकरण के साथ वापसी करेंगे? आने वाले चुनावों में सिकटा एक बार फिर बिहार के सबसे दिलचस्प मुकाबलों में से एक बन सकता है।