बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Election Row) के ताजा नतीजों ने न केवल राजनीतिक समीकरण बदल दिए हैं बल्कि चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर विपक्षी दलों के भीतर गहरी नाराज़गी भी दर्ज कराई है। महागठबंधन को जिस तरह से करारी हार का सामना करना पड़ा, उसके बाद समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने चुनाव आयोग की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि बिहार का चुनाव लोकतांत्रिक ढांचे में खतरनाक संदेश छोड़ गया है।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ सांसद अवधेश प्रसाद ने चुनाव आयोग पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि बिहार का चुनाव लोकतंत्र पर किया गया एक सुनियोजित हमला प्रतीत होता है। उनके अनुसार, जब आचार संहिता लागू थी तभी राज्य की महिलाओं के खातों में दस हजार रुपये का भुगतान किया जाना इस बात का संकेत देता है कि चुनाव को प्रभावित करने के लिए सरकारी मशीनरी का उपयोग हुआ। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग की चुप्पी इस पूरे प्रकरण को और अधिक संदिग्ध बनाती है, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता के लिए खतरे की घंटी है।
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उधर कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने चुनावी हार को लेकर आत्ममंथन की बात स्वीकार की, लेकिन भारतीय राजनीति के इतिहास को उदाहरण के तौर पर रखते हुए कहा कि राजनीतिक उतार-चढ़ाव किसी भी दल का स्थायी भाग्य नहीं होता। उन्होंने 1984 का उल्लेख करते हुए कहा कि जब भाजपा के सिर्फ दो ही सांसद सदन में पहुंचे थे और यहां तक कि अटल बिहारी वाजपेयी भी हार गए थे, तब भी पार्टी ने धैर्य रखा और जनता के बीच अपना भरोसा मजबूत किया। तिवारी ने कहा कि बिहार में परिणाम उम्मीदों के अनुसार नहीं आए, लेकिन कांग्रेस अहंकार नहीं बल्कि संयम और मर्यादा की भाषा में जनता से संवाद करेगी।
पूर्व कांग्रेस नेता शकील अहमद ने कहा, “बिहार चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले हैं। हमें ऐसे नतीजों की उम्मीद नहीं थी… 65 लाख लोगों के वोट कटना बहुत चौंकाने वाला है… अगर 65 लाख लोगों का वोट काटा है तो 65 जगहों पर भी तो प्रदर्शन होना जरूरी था जो कि कहीं भी नजर नहीं आया…”
बता दें कि राज्य की 243 सीटों में से सबसे ज्यादा बीजेपी ने 89 सीटें जीती हैं। वहीं सहयोगी दल जनता दल यूनाइटेड को 85 सीटें मिली हैं। एनडीए में शामिल चिराग पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास ) को 19 सीटें मिली हैं। जीतनराम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) को पांच सीटें मिली हैं। उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा चार सीटें जीतने में सफल रही है।
राष्ट्रीय जनता दल का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। महागठबंधन का नेतृत्व कर रही पार्टी को सिर्फ 25 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। वहीं सहयोगी दल कांग्रेस को छह सीटें मिली हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन को दो सीटें मिलीं। जबकि असदुद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम पांच सीटें जीतने में कामयाब रही। इंडियन इन्क्लुसिव पार्टी, माकपा और बहुजन समाज पार्टी को एक-एक सीट मिली है।






















