Bihar Election Vote Share: बिहार विधानसभा चुनावों का इतिहास सिर्फ सीटों का खेल नहीं बल्कि वोट प्रतिशत की कहानी भी है, जो यह बताता है कि जनता का झुकाव किस ओर रहा और किस नेता को जनता ने अपने विश्वास से नवाजा। 1995 से लेकर 2015 तक के नतीजों पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि बिहार की राजनीति में बदलाव लगातार होता रहा और हर चुनाव ने एक नई राजनीतिक तस्वीर पेश की।
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1995 के चुनाव से शुरुआत करें तो उस समय लालू प्रसाद यादव का करिश्मा चरम पर था। राजद ने 61.8% वोट प्रतिशत के साथ सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत की और लालू यादव मुख्यमंत्री बने। इसके बाद 2000 का चुनाव हुआ जिसमें राबड़ी देवी को 62.6% वोट मिले और वे मुख्यमंत्री बनीं। यह दौर लालू-राबड़ी शासन का सबसे मजबूत काल माना जाता है, जब राजद का सामाजिक समीकरण पूरे बिहार पर हावी था।
2005 की शुरुआत में बिहार की राजनीति ने करवट ली। फरवरी 2005 के चुनाव में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और 46.5% वोट शेयर के बावजूद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा। इसी साल अक्टूबर में दोबारा चुनाव हुए और नीतीश कुमार का सितारा चमका। उन्हें 45.8% वोट मिले और पहली बार उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। यही पल बिहार की राजनीति में बदलाव का निर्णायक मोड़ साबित हुआ।
2010 के चुनाव में नीतीश कुमार ने अपनी पकड़ और मजबूत कर ली। उन्हें 52.7% वोट मिले और उनकी छवि एक सुशासन बाबू के तौर पर स्थापित हुई। इस जीत ने उन्हें राज्य की राजनीति में सबसे बड़ा चेहरा बना दिया।
2015 का चुनाव एक बार फिर नीतीश कुमार के लिए अहम साबित हुआ। महागठबंधन के सहारे उन्होंने 56.91% वोट शेयर हासिल किया और मुख्यमंत्री बने रहे। यह चुनाव भाजपा के लिए झटका और महागठबंधन के लिए बड़ी जीत थी।
अगर हम 20 साल की इस चुनावी यात्रा को देखें तो यह साफ है कि 1995 से 2000 तक राजद का दबदबा रहा, लेकिन 2005 के बाद से नीतीश कुमार ने अपनी राजनीतिक जमीन इतनी मजबूत की कि वे लगातार तीन चुनावों तक सत्ता में बने रहे। वहीं भाजपा और कांग्रेस जैसे दलों का वोट शेयर इस पूरे दौर में कभी स्थायी तौर पर बढ़ नहीं पाया।
बिहार की राजनीति में वोट प्रतिशत के ये आंकड़े सिर्फ अतीत की तस्वीर नहीं हैं बल्कि यह भी संकेत देते हैं कि मतदाता किस तरह बदलते हालात और नए मुद्दों के हिसाब से अपनी राय तय करते हैं। यही वजह है कि बिहार चुनाव 2025 में भी सभी दलों की नजर वोट प्रतिशत के इस गणित पर होगी क्योंकि सत्ता का रास्ता यहीं से होकर गुजरता है।






















