पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में अभी छह महीने बाकी हैं, लेकिन राजनीतिक दलों में उथल-पुथल तेज हो चुकी है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) हमेशा की तरह चुनावी मोड में है, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अपने तरीके से तैयारी कर रही है, और कांग्रेस… कांग्रेस खुद की रणनीति में उलझी नजर आ रही है।
कांग्रेस ने बिहार चुनाव की कमान इस बार कर्नाटक के नेता कृष्णा अल्लावरू को सौंपी है। इसके अलावा, प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह को हटाकर उनकी जगह राजेश राम को लाया गया है, जो दलित समुदाय से आते हैं। हालांकि, कांग्रेस की यह नई रणनीति पहले ही ढहती नजर आ रही है।
दिल्ली में मीटिंग, तेजस्वी पर टकराव!
दिल्ली में हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता—मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी समेत बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने हिस्सा लिया। इस मीटिंग में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने खुलकर कहा कि अगर गठबंधन बना रहेगा, तो मुख्यमंत्री चेहरा तेजस्वी यादव ही होंगे।
बस फिर क्या था! कांग्रेस के नए प्रभारी कृष्णा अल्लावरू इस बयान पर भड़क गए और जोर देकर कहा कि सीएम पद पर फैसला चुनाव के बाद होगा। इससे कांग्रेस दो गुटों में बंट गई—एक ओर वे नेता जो गठबंधन की मजबूती के लिए तेजस्वी को सीएम फेस मान चुके हैं, तो दूसरी ओर वे जो कांग्रेस की स्वतंत्र पहचान बचाने की बात कर रहे हैं।
बिहार कांग्रेस की उलझी चाल
कांग्रेस की रणनीति शुरुआत में बिल्कुल अलग थी। पहले पार्टी के अंदर एक गुट चाहता था कि बिहार में पार्टी अकेले चुनाव लड़े। इसके लिए कन्हैया कुमार को आगे किया गया और “पलायन यात्रा” और “बेरोजगारी यात्रा” जैसी मुहिम भी चलाई गई। लेकिन कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा झटका तब लगा जब इन यात्राओं में लोगों का उत्साह उम्मीद के मुताबिक नहीं दिखा।
खबरों के मुताबिक, बिहार में कन्हैया कुमार की यात्रा फ्लॉप साबित हुई। कांग्रेस के रणनीतिकारों को अंदाजा हो गया कि अकेले चुनाव लड़ना पार्टी के लिए खतरा साबित हो सकता है। इसी वजह से कांग्रेस नेतृत्व ने आरजेडी से गठबंधन बरकरार रखने का फैसला किया। लेकिन कांग्रेस की इस चाल का भी RJD पर ज्यादा असर नहीं हुआ—आरजेडी ने इस बार 70 सीटें देने से भी इनकार कर दिया।
कांग्रेस में विरोधाभास, गठबंधन में अनिश्चितता
हालात यह हैं कि बिहार कांग्रेस के बड़े नेता अब भी अलग-अलग बयान दे रहे हैं। कृष्णा अल्लावरू गठबंधन में रहते हुए भी सीएम फेस को लेकर कोई वादा करने के पक्ष में नहीं हैं। अखिलेश प्रसाद सिंह खुलकर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री घोषित करने की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस के कई नेता मानते हैं कि पार्टी को आरजेडी के साथ मजबूती से जुड़ना चाहिए, लेकिन कुछ का मानना है कि इससे पार्टी की पहचान खत्म हो जाएगी।
RJD ने कांग्रेस को साइडलाइन किया?
RJD की ओर से भी कांग्रेस के प्रति खास उत्साह नहीं दिख रहा। इफ्तार पार्टी में कांग्रेस नेताओं को न बुलाने जैसी घटनाओं से साफ संकेत मिल रहे हैं कि लालू यादव की पार्टी कांग्रेस को गंभीरता से नहीं ले रही। कांग्रेस इस बात को समझ गई और अब मजबूरी में गठबंधन में अपनी सीटें बचाने की लड़ाई लड़ रही है।
बिहार की राजनीतिक बिसात पर आगे क्या?
बीजेपी गठबंधन मजबूत: एनडीए में नीतीश कुमार, जीतनराम मांझी, चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता एकजुट नजर आ रहे हैं।
RJD-कांग्रेस में खींचतान: कांग्रेस को कम सीटें मिलने की आशंका बढ़ गई है।
कन्हैया कुमार का भविष्य अधर में: कांग्रेस में उनके कद को लेकर भी अब सवाल उठ रहे हैं।
कांग्रेस की कोशिश, पर RJD की चलेगी!
कांग्रेस ने बिहार में खुद को मजबूत करने की पूरी कोशिश की, लेकिन पार्टी की योजनाएं गठबंधन में सीटें बढ़ाने तक ही सीमित रह गईं। अब देखना यह होगा कि चुनाव तक कांग्रेस अपनी स्थिति को मजबूत कर पाती है या नहीं। लेकिन फिलहाल, जो दिख रहा है वह यह है कि बिहार की राजनीति में असली खेल RJD और BJP के बीच ही होगा और कांग्रेस सिर्फ ‘सहायक’ की भूमिका में रह जाएगी।