बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो चुकी है। 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले सभी पार्टियां अपनी रणनीति बनाने में जुटी हैं। इस बार कांग्रेस ने एक अलग राह पकड़ने का संकेत दिया है। लंबे समय से राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सहारे बिहार की राजनीति में बनी रहने वाली कांग्रेस अब ‘समझौते की राजनीति’ से आगे बढ़कर ‘विजय की राजनीति’ करना चाहती है।
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2020 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर लड़ने के बावजूद कांग्रेस महज 19 सीटों पर ही जीत सकी थी। इसके बाद गठबंधन में उसकी उपयोगिता पर सवाल उठने लगे थे। लेकिन इस बार कांग्रेस अपनी पुरानी गलतियों को दोहराने के मूड में नहीं दिख रही है। पार्टी सीटों की संख्या बढ़ाने की बजाय ऐसी सीटें चाहती है जहां उसकी जीत की संभावनाएं ज्यादा हैं।
बिहार में दिखेगा कांग्रेस का ‘दिल्ली मॉडल’?
कांग्रेस ने हाल ही में दिल्ली में अपनी रणनीति बदली थी। वहां पार्टी ने गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद सिर्फ उन्हीं सीटों पर जोर दिया जहां उसकी पकड़ मजबूत थी। बिहार में भी कांग्रेस इसी रणनीति पर आगे बढ़ रही है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कांग्रेस ने हाल ही में एक आंतरिक सर्वे कराया है। इस सर्वे में यह साफ हो गया कि पार्टी को उन सीटों पर फोकस करना चाहिए जहां उसका संगठन मजबूत है और जीत की संभावना ज्यादा है। सर्वे के अनुसार, कांग्रेस के पास बिहार में करीब 60 सीटें ऐसी हैं, जहां वह मजबूत स्थिति में है।
गठबंधन में समझौता, लेकिन शर्तों के साथ!
कांग्रेस गठबंधन में ही चुनाव लड़ेगी, लेकिन इस बार वह सीटों की संख्या को लेकर जिद नहीं करेगी। कांग्रेस का कहना है कि 2020 में उन्हें जो 70 सीटें मिली थीं, लेकिन उनमें से 45 ऐसी थीं जहां कांग्रेस उम्मीदवारों का प्रदर्शन लगातार खराब रहा था। सिर्फ संख्या बढ़ाने के लिए सीटें दे दी गई थीं। इस बार हम ऐसी गलती नहीं दोहराएंगे। इसका मतलब साफ है कि कांग्रेस सीटों की अदला-बदली के लिए भी तैयार है, लेकिन सिर्फ उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़ेगी जहां जीत की संभावना हो।
लेफ्ट फैक्टर और कांग्रेस की नई रणनीति
2020 के चुनाव में कांग्रेस की परंपरागत कई सीटें वाम दलों (लेफ्ट) को दे दी गई थीं, जिससे उन्हें फायदा मिला। वाम दलों ने बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन कांग्रेस के खराब प्रदर्शन ने पूरे महागठबंधन को कमजोर कर दिया। 2015 में जब कांग्रेस ने सिर्फ 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था, तब उसने 27 सीटें जीती थीं। इसका मतलब यह हुआ कि ज्यादा सीटें मिलने का मतलब ज्यादा जीत नहीं होता।
कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि यदि उसे गठबंधन में मजबूत सीटें मिलती हैं, तो वह 2020 से कम सीटों पर भी चुनाव लड़ सकती है। इससे उसकी जीत का प्रतिशत बढ़ेगा और महागठबंधन में उसकी अहमियत बनी रहेगी।
कांग्रेस की यह नई रणनीति उसकी चुनावी स्थिति को मजबूत कर सकती है, लेकिन इसका असर गठबंधन के अन्य दलों—खासतौर पर राजद—पर भी पड़ेगा। अगर कांग्रेस ज्यादा प्रभावी सीटों की मांग करती है, तो क्या राजद और अन्य सहयोगी इसके लिए तैयार होंगे?
इसका जवाब तो आने वाले दिनों में मिलेगा, लेकिन इतना तय है कि 2025 का बिहार चुनाव कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई बन चुका है, और इस बार वह कोई जोखिम नहीं लेना चाहती।