बिहार की राजनीति एक बार फिर गर्मा चुकी है। 2025 के विधानसभा चुनाव की आहट के साथ ही सत्ता की जंग का बिगुल बज चुका है। मैदान में उतरने से पहले महागठबंधन ने अपनी पहली चाल चल दी है—राजनीतिक समन्वय की दिशा में एक ‘कोऑर्डिनेशन कमिटी’ का गठन। लेकिन यह सिर्फ एक कमिटी नहीं, बल्कि उस ‘वार रूम’ की नींव है जहां से तेजस्वी यादव चुनावी रण का संचालन करेंगे।
पहली बैठक, पहला फैसला — तेजस्वी को दी गई ‘महाकमान‘
17 अप्रैल को पटना स्थित आरजेडी कार्यालय में महागठबंधन की पहली बैठक हुई। इसमें छह दलों के प्रतिनिधियों ने शामिल होकर चुनावी समन्वय के लिए साझा कमिटी बनाने का फैसला लिया। और कमिटी की बागडोर सौंप दी गई तेजस्वी यादव को। तेजस्वी न सिर्फ महागठबंधन के सबसे बड़े चेहरे हैं, बल्कि विपक्ष की रणनीति के केंद्रीय नायक भी बन चुके हैं।
छह दल, 12 चेहरे — लेकिन अभी अधूरी तस्वीर
कोऑर्डिनेशन कमिटी में हर दल से दो-दो सदस्य शामिल किए जाएंगे, लेकिन अब तक केवल वाम दल—सीपीआई और सीपीएम—ने अपने प्रतिनिधियों के नाम भेजे हैं।
- सीपीआई ने रामनरेश पांडेय और राम बाबू कुमार को नामित किया है।
- सीपीएम ने ललन चौधरी और विधायक अजय कुमार का नाम भेजा है।
लेकिन तीसरी वामपंथी पार्टी—सीपीआई (माले)—अभी भी पसोपेश में है। नाम तय नहीं हुए हैं। वहीं, सबसे अहम दल—आरजेडी, कांग्रेस और वीआईपी—अब तक खामोश हैं।
अगली बैठक 24 अप्रैल — पटना में तय होगा ‘रण का रुख‘
सियासी हलचल अब अगले पड़ाव की ओर बढ़ चुकी है। महागठबंधन की दूसरी बैठक 24 अप्रैल को पटना स्थित सदाकत आश्रम (कांग्रेस प्रदेश कार्यालय) में होगी। यह बैठक सिर्फ एक मुलाकात नहीं होगी, बल्कि उस साझा रणनीति का खाका तय करेगी, जो नीतीश कुमार और बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने का सपना देख रही है।
कौन होगा कमिटी में? अटकलें तेज…
आरजेडी की तरफ से चर्चा में हैं अब्दुलबारी सिद्दिकी, संजय यादव और आलोक मेहता। लेकिन इन तीनों में से दो को ही जगह मिलेगी।
दिलचस्प बात ये है कि पार्टी अध्यक्ष जगदानंद सिंह पहली बैठक में नहीं आए और सूत्रों के मुताबिक आगे भी वे सक्रिय भूमिका में नहीं दिखेंगे। ऐसे में उनके शामिल होने की संभावना न के बराबर है।
कांग्रेस की ओर से प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरु, अध्यक्ष राजेश राम, और वरिष्ठ नेता शकील अहमद में से दो नाम चुने जा सकते हैं। कांग्रेस आलाकमान की हरी झंडी के बाद ही यह फैसला संभव होगा।
वीआईपी से पार्टी प्रमुख मुकेश सहनी तो तय माने जा रहे हैं, लेकिन उनके साथ कौन होगा—यह पार्टी के अंदर गहन मंथन का विषय बना हुआ है।
अब देखना ये है कि 24 अप्रैल की बैठक में क्या सिर्फ नामों की घोषणा होगी या फिर चुनावी जंग की पहली रणनीति का खुलासा भी? बिहार की सियासत की नई पटकथा लिखी जा रही है—कलम तेजस्वी के हाथ में है, लेकिन काग़ज़ पर अभी कुछ खाली जगहें हैं।