पश्चिम चंपारण जिले की लौरिया विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 05) बिहार की राजनीति में लगातार चर्चा में रही है। यह सीट जातीय विविधता और सामुदायिक समीकरणों का अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करती है, जहां विकास से जुड़े स्थानीय मुद्दे और सामाजिक ताने-बाने दोनों मिलकर चुनावी परिणामों को प्रभावित करते हैं।
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2010 से लौरिया विधानसभा में विनय बिहार का ‘वर्चस्व’
इस सीट पर 2010 से लगातार विनय बिहारी का वर्चस्व बना हुआ है। 2010 में उन्होंने निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज की, वहीं 2015 और 2020 में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रत्याशी के तौर पर विजयी हुए। 2020 के चुनाव में उन्होंने 49.48% वोट (77,927 वोट) पाकर राजद के शम्भू तिवारी को हराया, जिन्हें 31.06% वोट (48,923 वोट) मिले। उस चुनाव में कुल 11 उम्मीदवार थे, जिनमें तीन निर्दलीय शामिल थे।
जातीय समीकरणों की बात करें, तो लौरिया एक मिश्रित जातीय क्षेत्र है। यादव और मुस्लिम मतदाता यहाँ निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, और कोइरी मतदाता भी प्रभावी संख्या में हैं।
- मुस्लिम मतदाता: 16.8% (लगभग 43,055)
- अनुसूचित जाति: 13.3% (लगभग 34,085)
- अनुसूचित जनजाति: 1.43% (लगभग 3,665)
- ग्रामीण मतदाता: 100% (लगभग 2.56 लाख)
विकास के मुद्दे, जो 2020 के चुनाव में प्रमुख रहे, उनमें शामिल थे:
- जवाहिरपुल घाट और सिकरहना नदी पर पुलों की मांग,
- लौरिया-योगापट्टी पथ का नवीनीकरण,
- एनएच 727 से नवलपुर सड़क का सुधार,
- तुरकही नाले की सफाई,
- और लौरिया को बौद्ध सर्किट से जोड़ने की माँग।
लौरिया सीट की विशेषता इसकी सामाजिक जटिलता है। यहाँ विकास की अपेक्षाएँ और जातीय समीकरण, दोनों ही हर चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं। लगातार तीन बार विधायक रहे विनय बिहारी का जनाधार इस बात का संकेत है कि मतदाता स्थायित्व और उम्मीदों को प्राथमिकता दे रहे हैं।