बिहार के स्वास्थ्य तंत्र की जमीनी हकीकत एक बार फिर गोपालगंज से सामने आई है। राज्य के मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत के गृह ज़िले में स्थित मॉडल सदर अस्पताल (Gopalganj Model Sadar Hospital) उस वक्त अंधेरे में डूब गया, जब इमरजेंसी वार्ड में बिजली आपूर्ति अचानक बाधित हो गई। हालात इतने खराब हो गए कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों को मोबाइल फोन की टॉर्च जलाकर मरीजों का इलाज करना पड़ा। यह दृश्य किसी दूरदराज़ इलाके के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का नहीं, बल्कि एक ‘मॉडल’ सदर अस्पताल का है, जिसका उद्घाटन खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर चुके हैं।

बताया जा रहा है कि करीब एक घंटे तक इमरजेंसी वार्ड में बिजली आपूर्ति पूरी तरह ठप रही। इस दौरान जनरेटर से भी वैकल्पिक व्यवस्था शुरू नहीं हो सकी। अंधेरे में इलाज का यह वीडियो अस्पताल परिसर में मौजूद लोगों ने रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर साझा कर दिया, जिसके बाद यह तेजी से वायरल हो गया। वीडियो के सामने आते ही स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर लोगों का गुस्सा और अविश्वास खुलकर सामने आ गया है।
सबसे गंभीर सवाल यह है कि जब बिहार सरकार के सबसे बड़े प्रशासनिक अधिकारी का गृह जिला होने के बावजूद गोपालगंज के मॉडल सदर अस्पताल में बिजली जैसी बुनियादी सुविधा सुनिश्चित नहीं हो पा रही है, तो बाकी जिलों की स्थिति क्या होगी। अस्पताल को ‘मॉडल’ का दर्जा देने के दावे और जमीनी सच्चाई के बीच का यह फासला अब उजागर हो चुका है।
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अस्पताल प्रशासन का तर्क है कि मॉडल भवन का निर्माण कार्य अबतक पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। निर्माण एजेंसी ने न तो काम पूरा किया है और न ही भवन को औपचारिक रूप से हैंडओवर किया गया है। कागजी प्रक्रिया अधूरी होने की वजह से स्थायी व्यवस्थाएं लागू नहीं की जा सकी हैं। बारिश के कारण भवन परिसर में पानी जमा होने की समस्या भी सामने आई, जिसके चलते मरीजों की सुविधा के नाम पर सिर्फ इमरजेंसी वार्ड को नए भवन में शिफ्ट किया गया है। प्रशासन का दावा है कि निर्माण कार्य पूरा होते ही व्यवस्थाएं सामान्य और बेहतर हो जाएंगी।

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब मॉडल सदर अस्पताल की बदहाली उजागर हुई हो। करीब दो सप्ताह पहले भी इमरजेंसी वार्ड में बिजली गुल होने की घटना सामने आई थी। उस वक्त भी अंधेरे में इलाज का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था और लोगों ने अस्पताल को ‘मॉडल’ नहीं बल्कि ‘मिसमैनेजमेंट’ का उदाहरण बताया था। बावजूद इसके, हालात जस के तस बने हुए हैं।
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अब सवालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जब भवन निर्माण पूरा ही नहीं हुआ था, तो अक्टूबर महीने में मुख्यमंत्री से इसका उद्घाटन क्यों कराया गया। उद्घाटन के बाद भी निर्माण एजेंसी ने काम पूरा क्यों नहीं किया। आधे-अधूरे भवन में इमरजेंसी वार्ड को शिफ्ट करने का फैसला किसके निर्देश पर लिया गया। क्या यह मरीजों की जान के साथ सीधा खिलवाड़ नहीं है। और सबसे अहम सवाल यह कि जिम्मेदार अधिकारी कब इस चुप्पी को तोड़ेंगे और जवाबदेही तय होगी।






















