Bihar Cabinet Expansion: बिहार की राजनीति अगले महीने एक बड़े बदलाव की दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है। राज्य सरकार के भीतर मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा ने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, जनवरी के मध्य में कैबिनेट का विस्तार लगभग तय माना जा रहा है, जिसमें नौ नए मंत्री शपथ ले सकते हैं। इसमें जेडीयू के छह और बीजेपी के तीन विधायकों को जगह मिलने की संभावना जताई जा रही है। यह कदम सिर्फ प्रशासनिक जिम्मेदारी बांटने का मामला नहीं है, बल्कि आगामी चुनावी रणनीति से भी सीधे तौर पर जुड़ा माना जा रहा है।
राजनीतिक हलकों में पिछले दिनों यह बात तेज़ी से घूम रही थी कि क्या जेडीयू अपनी संख्या बढ़ाने के लिए अन्य दलों के विधायकों को साथ जोड़ने की कवायद कर रही है। लेकिन इस अटकल को जेडीयू के वरिष्ठ नेताओं ने सिरे से खारिज कर दिया है। पार्टी का कहना है कि मौजूदा समीकरण में किसी भी प्रकार की संख्या बढ़ाने की आवश्यकता नहीं है और न ही किसी दल में टूट-फूट की कोई रणनीति चल रही है। हालांकि अगर कोई स्वेच्छा से आना चाहता है तो उस पर रोक नहीं है, लेकिन राजनीतिक ‘इंजीनियरिंग’ की चर्चा को पार्टी ने मिथक बताया है।
सूत्रों का दावा है कि इस बार नीतीश सरकार के विस्तार में नए चेहरों पर जोर दिखेगा। खासकर जेडीयू में कुशवाहा और अतिपिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधित्व को मजबूत करने की तैयारी है। राजनीतिक समीकरण को देखते हुए यह कदम महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि ये वर्ग बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। वहीं, बीजेपी भी अपने कोटे में कुछ नए नामों की एंट्री कर सकती है ताकि संगठनात्मक और जातीय बैलेंस को मजबूत किया जा सके।
मौजूदा कैबिनेट में कई मंत्रियों के पास एक से अधिक विभाग हैं, जिससे काम का बोझ बढ़ा हुआ है। नए विस्तार के जरिए इन विभागों का पुनर्वितरण भी अपेक्षित है ताकि शासन की गति तेज़ की जा सके। उल्लेखनीय है कि बिहार में कुल 36 मंत्री बनाए जा सकते हैं, जबकि हालिया शपथ ग्रहण के बाद अभी बीजेपी के 14, जेडीयू के 8, एलजेपी (आर), हम और आरएलएम के एक-एक मंत्री कैबिनेट में शामिल हैं। बाकी रिक्त स्थानों को भरने की तैयारी ही इस विस्तारीकरण की वजह बन रही है।
अब निगाहें इस बात पर टिक गई हैं कि नीतीश कुमार किस जातीय फार्मूले के तहत इन नए चेहरों को शामिल करते हैं और किन विधायकों की किस्मत खुलती है। नए साल की शुरुआत में बिहार की सियासत एक बार फिर करवट लेने वाली है और यह फेरबदल कई राजनीतिक संदेश देने वाला माना जा रहा है।






















