बिहार की सांस्कृतिक (Bihar Culture Revival) पहचान को नई ऊंचाई देने की दिशा में कला एवं संस्कृति विभाग, बिहार सरकार की हालिया पहलों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य अब केवल अपनी ऐतिहासिक विरासत के लिए नहीं, बल्कि समकालीन रचनात्मकता, कलाकार कल्याण और सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था के मजबूत मॉडल के लिए भी पहचाना जाएगा। विभाग द्वारा प्रस्तुत उपलब्धियों और भावी कार्ययोजनाओं का समग्र विश्लेषण बताता है कि सरकार ने कला को केवल आयोजन तक सीमित न रखते हुए उसे सामाजिक सुरक्षा, रोजगार, पर्यटन और वैश्विक ब्रांडिंग से जोड़ा है।
कलाकारों के सम्मान और सामाजिक सुरक्षा की दिशा में मुख्यमंत्री कलाकार पेंशन योजना एक ऐतिहासिक हस्तक्षेप के रूप में उभरी है। जीवन भर कला साधना करने वाले वरिष्ठ और आर्थिक रूप से कमजोर कलाकारों को ₹3,000 मासिक पेंशन देकर राज्य ने यह संदेश दिया है कि संस्कृति केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि वर्तमान की जिम्मेदारी भी है। पटना से लेकर किशनगंज तक 10 जिलों के 85 कलाकारों का चयन इस योजना के व्यावहारिक क्रियान्वयन का प्रमाण है, जिससे उपेक्षित कलाकारों को सम्मानजनक जीवन का संबल मिला है।
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वहीं, गुरु-शिष्य परंपरा योजना के जरिए विलुप्तप्राय लोक कलाओं को नई पीढ़ी से जोड़ने की रणनीति अपनाई गई है। अनुभवी कलाकारों और युवाओं के बीच प्रत्यक्ष प्रशिक्षण संबंध स्थापित कर सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि लोक संगीत, नृत्य और वादन केवल मंच तक सीमित न रहें, बल्कि पीढ़ियों में प्रवाहित हों। प्राप्त 233 आवेदनों की समीक्षा इस बात का संकेत है कि युवाओं में पारंपरिक कलाओं के प्रति रुचि फिर से जागृत हो रही है।
सांस्कृतिक विकेंद्रीकरण के लक्ष्य को साकार करते हुए अटल कला भवन निर्माण योजना ने जिला स्तर पर सांस्कृतिक ढांचे को मजबूती दी है। 620 दर्शक क्षमता वाले आधुनिक कला भवनों का निर्माण सारण, गया, पूर्णिया, सहरसा जैसे जिलों में पूरा होना और अन्य जिलों में कार्य प्रगति पर होना यह दर्शाता है कि अब कला केवल राजधानी-केंद्रित नहीं रहेगी, बल्कि जिलों तक संस्थागत रूप से पहुंचेगी।
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तीन वर्षों से लंबित बिहार कला सम्मान पुरस्कारों का पुनरुद्धार भी कलाकारों के मनोबल को नई ऊर्जा देने वाला कदम साबित हुआ है। 52 कलाकारों को ₹27 लाख की पुरस्कार राशि के साथ सम्मानित कर सरकार ने यह भरोसा लौटाया है कि कला साधना को सार्वजनिक मान्यता और संस्थागत समर्थन मिलेगा।
डिजिटल गवर्नेंस की दिशा में कलाकार पंजीकरण पोर्टल एक महत्वपूर्ण नवाचार है। 3,800 से अधिक कलाकारों का पंजीकरण यह दर्शाता है कि डेटा-आधारित नीति निर्माण और पारदर्शी कल्याण वितरण की नींव रखी जा चुकी है, जिससे भविष्य में योजनाओं का लाभ लक्षित वर्ग तक तेजी से पहुंचेगा।
फिल्म और रचनात्मक उद्योगों के क्षेत्र में बिहार फिल्म प्रोत्साहन नीति 2024 के प्रभावी क्रियान्वयन ने राज्य की छवि बदलनी शुरू कर दी है। 30 से अधिक फिल्मों, वेब सीरीज और डॉक्यूमेंट्री को शूटिंग अनुमति मिलना इस बात का संकेत है कि बिहार अब फिल्म अनुकूल राज्य के रूप में उभर रहा है। IFFI गोवा जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर सक्रिय भागीदारी ने इस छवि को और सशक्त किया है।
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मानव संसाधन विकास को केंद्र में रखते हुए फिल्म और नाट्य के क्षेत्र में छात्रवृत्तियां, बिहार फिल्म एवं ड्रामा संस्थान की स्थापना की सैद्धांतिक स्वीकृति और BSFDFCL के संस्थागत सुदृढ़ीकरण से यह स्पष्ट है कि सरकार केवल आयोजन नहीं, बल्कि दीर्घकालिक इकोसिस्टम तैयार कर रही है। इससे प्रतिभाओं का पलायन रुकेगा और राज्य के भीतर ही रोजगार व निवेश के अवसर सृजित होंगे।
सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन के मोर्चे पर वैशाली में ₹550 करोड़ की लागत से निर्मित बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय-सह-स्मृति स्तूप बिहार को वैश्विक बौद्ध पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करने की दिशा में मील का पत्थर है। झिझिया लोकनृत्य का इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज होना, छठ महापर्व को यूनेस्को विश्व विरासत सूची में शामिल करने का प्रस्ताव और पुरातात्विक स्थलों के संरक्षण से यह स्पष्ट होता है कि बिहार अपनी लोक और ऐतिहासिक विरासत को वैश्विक पहचान दिलाने की रणनीति पर काम कर रहा है।
















