बिहार में जमीन, म्यूटेशन और राजस्व व्यवस्था से जुड़ा भ्रष्टाचार (Bihar Land Corruption) एक बार फिर सियासी बहस के केंद्र में आ गया है। पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव के ताजा आरोपों ने राज्य सरकार के उन दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिनमें भू-माफिया पर सख्त कार्रवाई की बात कही जा रही थी। मामला सिर्फ एक अधिकारी तक सीमित नहीं दिखता, बल्कि यह बिहार की जमीन व्यवस्था में लंबे समय से चले आ रहे कथित भ्रष्टाचार की गहरी जड़ों की ओर इशारा करता है।
पप्पू यादव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट के जरिए सीधे बिहार के उपमुख्यमंत्री और राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री विजय कुमार सिन्हा को टैग करते हुए गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि पूर्णिया जिले के केनगर अंचल का एक सर्कल ऑफिसर जमीन म्यूटेशन के बदले खुलेआम 50 लाख रुपये की मांग करता है। सांसद का कहना है कि यदि कोई आवेदक रिश्वत देने से इनकार करता है, तो पहले से स्वीकृत म्यूटेशन तक को रद्द कर दिया जाता है। यह आरोप न सिर्फ प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल उठाते हैं, बल्कि आम लोगों की जमीन से जुड़े अधिकारों की सुरक्षा को लेकर भी चिंता बढ़ाते हैं।

अपने पोस्ट में पप्पू यादव ने तीखी भाषा का इस्तेमाल करते हुए कहा कि बड़ी-बड़ी घोषणाओं से हालात नहीं बदलेंगे, जब तक जमीनी स्तर पर बैठे अधिकारी ही कथित तौर पर भूमाफिया की भूमिका निभा रहे हों। उन्होंने उपमुख्यमंत्री से अप्रत्यक्ष रूप से यह भी पूछा कि अगर सरकार सच में भू-माफिया के खिलाफ है, तो ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई कब होगी। सांसद के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है और विपक्ष को सरकार पर हमला बोलने का नया मौका दे दिया है।
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दरअसल, यह विवाद ऐसे समय सामने आया है, जब हाल ही में उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने सार्वजनिक मंच से यह ऐलान किया था कि बिहार में भू-माफिया को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। 18 दिसंबर को पटना में राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग की समीक्षा बैठक के बाद उन्होंने कहा था कि जिस तरह खनन माफिया पर कार्रवाई कर उन्हें “ठंडा” किया गया, उसी तरह अब जमीन माफिया पर भी सख्त शिकंजा कसा जाएगा। उन्होंने अधिकारियों को स्पष्ट चेतावनी दी थी कि जो भी विभाग की छवि को नुकसान पहुंचाएगा, उसके खिलाफ कठोर कानूनी कदम उठाए जाएंगे।
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पप्पू यादव के आरोपों ने सरकार के इन्हीं दावों की परीक्षा ले ली है। सवाल यह उठ रहा है कि क्या ये आरोप सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी हैं या फिर बिहार की जमीन और म्यूटेशन व्यवस्था में व्याप्त उस सिस्टमेटिक भ्रष्टाचार की ओर इशारा करते हैं, जिसकी शिकायतें वर्षों से सामने आती रही हैं। यदि सांसद के दावे सही साबित होते हैं, तो यह सरकार की “जीरो टॉलरेंस” नीति पर गंभीर सवाल खड़े करेगा।






















