Matihani Vidhansabha 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में अब बस दो महीने हैं। अभी तक किसी भी गठबंधन (NDA और महागठबंधन) में सीट बंटवारा नहीं हुआ है। लेकिन बैठकों का दौर जारी है। इस बीच एनडीए में सीट को लेकर सहयोगियों पार्टियों की प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू हो गई है। कई सीट पर सहयोगी पार्टियों में पेंच फंस सकता है। बिहार की मटिहानी विधानसभा सीट इस समय राजनीतिक हलचल का केंद्र बनी हुई है।
2020 में यहां चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) ने इतिहास रचते हुए जेडीयू को करारी शिकस्त दी थी। यह वही सीट थी जहां लोजपा (र) को अपनी एकमात्र जीत हासिल हुई थी, जिसने “चिराग मॉडल” को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया। अब 2025 के चुनाव से पहले तीनों बड़े खेमें—जेडीयू, महागठबंधन और लोजपा (र)—अपनी-अपनी रणनीति को धार दे रहे हैं। सवाल यह है कि क्या यह सीट एनडीए के लिए सिरदर्द साबित होगी या महागठबंधन इस मौके का फायदा उठा पाएगा।
2020 के विधानसभा चुनाव में लोजपा (र) ने एनडीए से अलग होकर ताल ठोंकी थी और राजकुमार सिंह को मटिहानी से टिकट दिया। उन्होंने जेडीयू के दिग्गज विधायक नरेंद्र कुमार सिंह उर्फ बोगो सिंह को केवल 333 वोटों के बेहद छोटे अंतर से मात दी थी। लेकिन सत्ता का स्वाद चखने के बाद राजकुमार सिंह ने चिराग पासवान का साथ छोड़कर जेडीयू की सदस्यता ग्रहण कर ली और अब वे सत्तारूढ़ दल के विधायक हैं। इस राजनीतिक पलटी ने मटिहानी को और दिलचस्प बना दिया है, क्योंकि जेडीयू इसे अपनी परंपरागत सीट मानती है जबकि लोजपा (र) इसे “अपनी जीत” बताकर दावा ठोक रही है।
एनडीए के भीतर स्थिति जटिल हो सकती है। जेडीयू किसी भी हाल में मटिहानी छोड़ना नहीं चाहेगी क्योंकि वर्तमान विधायक उसी का है। वहीं, लोजपा (र) इसे अपनी प्रतिष्ठा की सीट मानकर पीछे हटने को तैयार नहीं है। ऐसे में सीट बंटवारे को लेकर दोनों दलों में खींचतान होना तय है। यदि समझौते की जगह टकराव बढ़ता है तो महागठबंधन को इसका सीधा फायदा मिल सकता है।






















