जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की नेतृत्व क्षमता और विकासवादी दृष्टिकोण पर जोर देते हुए कहा कि नीतीश जी केवल घोषणाएं ही नहीं करते, बल्कि उन्हें धरातल पर उतार कर परिणाम भी दिखाते हैं। हाल ही में दिसंबर 2024 से फरवरी 2025 तक मुख्यमंत्री ने भीषण ठंड में राज्य के सभी 38 जिलों का दौरा कर ‘प्रगति यात्रा’ के माध्यम से जनता से सीधा संवाद किया। इस यात्रा के दौरान उन्होंने सैकड़ों नई घोषणाएं कीं, जिन्हें अब तेज़ी से अमल में लाया जा रहा है।
राज्य सरकार की मंजूरी से 430 योजनाओं पर काम शुरू हो चुका है, जिन पर 50 हजार करोड़ रुपये से अधिक की लागत खर्च होगी। इनमें 16 मेडिकल कॉलेजों और 9 डिग्री कॉलेजों की स्थापना, 17 औद्योगिक हब का निर्माण, 43 धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का विकास, 14 आधुनिक स्टेडियमों का निर्माण, 6 हवाई अड्डों का विस्तार, 7 अंतरराज्यीय बस अड्डे, 124 सड़कें, 24 पुल और 124 रेलवे ओवरब्रिज शामिल हैं। इसके अलावा सिंचाई और जल संसाधन क्षेत्र में जलाशय, तटबंध, चेकडैम और नहरों को सुदृढ़ करने की 40 योजनाएं भी शामिल की गई हैं। ये परियोजनाएं न केवल बुनियादी ढांचे को मजबूत करेंगी, बल्कि पर्यटन, शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योग के क्षेत्र में भी रोजगार और अवसरों की नई राहें खोलेंगी।
नीतीश कुमार की यात्राओं का इतिहास देखे तो यह स्पष्ट होता है कि वे हमेशा जनता की नब्ज को समझने और उनकी समस्याओं का समाधान खोजने को प्राथमिकता देते हैं। 2005 की ‘न्याय यात्रा’ से लेकर 2025 की ‘प्रगति यात्रा’ तक, उन्होंने न्याय, विकास, सेवा, विश्वास, समाज सुधार और समाधान जैसे विषयों पर राज्यभर में भ्रमण किया है। इन यात्राओं का उद्देश्य केवल राजनीतिक प्रदर्शन नहीं, बल्कि समाज की वास्तविक जरूरतों और आकांक्षाओं को समझना रहा है।
संजय झा ने कहा कि इन यात्राओं के दौरान नीतीश कुमार ने दहेज प्रथा, बाल विवाह और नशाखोरी जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई, वहीं बेटियों की शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण के महत्व पर भी जनता को जागरूक किया। यही वजह है कि ‘न्याय के साथ विकास’ का उनका विज़न आज बिहार की पहचान बन चुका है।
विशेषकर ठंड के मौसम में जब लोग घरों से बाहर निकलने से परहेज करते हैं, उस समय मुख्यमंत्री का पूरे राज्य का दौरा करना उनके समर्पण को दर्शाता है। 2023 की ‘समाधान यात्रा’ और 2025 की ‘प्रगति यात्रा’ में उन्होंने न केवल विकास कार्यों की समीक्षा की, बल्कि स्थानीय लोगों से सीधा फीडबैक लेकर तत्काल निर्णय भी लिये। इस दौरान उन्होंने ‘जीविका दीदियों’ की कहानियां सुनकर उनके सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण का अनुभव भी साझा किया, जिसने उन्हें भावनात्मक संतोष प्रदान किया।






















