बिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के चौथे दिन सदन का राजनीतिक पारा अचानक चढ़ गया जब राज्यपाल के अभिभाषण पर चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्ष पर तीखा प्रहार किया। सदन में सरकार की उपलब्धियों का विस्तार से उल्लेख करने के बाद मुख्यमंत्री जैसे ही अपने संबोधन के अंत में पहुंचे, उनकी आवाज़ में राजनीतिक तल्ख़ी साफ झलकने लगी। उन्होंने विपक्षी बेंचों की ओर मुड़कर सवाल उठाया कि जब सदन में कामकाज को आगे बढ़ाने की बात होती है तो विपक्ष सहयोग क्यों नहीं देता, जबकि विकास के हर कदम का लाभ पूरे राज्य को मिलता है।
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नीतीश का यह बयान सुनते ही आरजेडी विधायक भाई वीरेन्द्र ने उन्हें टोका। जवाब में मुख्यमंत्री ने सदन को याद दिलाया कि वे दो बार विपक्ष को अपने साथ लेकर चले थे और उस दौरान कितने काम हुए, इसका प्रमाण पूरा बिहार है। उन्होंने कहा कि उस समय विपक्ष के नेता उनके हर फैसले को स्वीकार करते थे और विकास की रफ्तार तेज थी। मुख्यमंत्री ने बिना नाम लिए यह भी संकेत दिया कि बाद में राजनीतिक समीकरण बिगड़े तो उन्होंने रिश्ता तोड़ लिया और अब लौटने का कोई सवाल ही नहीं उठता। नीतीश ने स्पष्ट संदेश दिया कि अब वे अपने मौजूदा गठबंधन के साथ ही रहेंगे और इस निर्णय में कोई बदलाव नहीं होगा।
नीतीश कुमार ने अपनी सरकार की योजनाओं, बुनियादी ढांचे के विकास और सामाजिक न्याय की दिशा में किए गए कार्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि विपक्ष इन वास्तविकताओं को याद रखे। हालांकि, इस पूरे विवादित क्षण के दौरान नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव सदन में मौजूद नहीं थे, जिसके कारण राजनीतिक हलकों में सवाल उठने लगे कि उनकी अनुपस्थिति रणनीतिक थी या आकस्मिक। सदन के भीतर की यह गर्मागर्मी शीतकालीन सत्र के बीच राजनीतिक तापमान को और भी तीखा कर गई और आने वाले दिनों में विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच और भी तेज टकराव के संकेत मिलते दिखे।






















