मुजफ्फरपुर में पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह की पांचवीं पुण्यतिथि पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा ने बिहार की राजनीति में नई बहस छेड़ दी। इस मौके पर पूर्व सांसद आनंद मोहन (Anand Mohan) ने ऐसा बयान दिया जिसने आगामी विधानसभा चुनावों की राजनीतिक दिशा पर गहरा असर डाल दिया है। उन्होंने साफ कहा कि अगली बार सत्ता की चाबी किसके हाथ में होगी, यह फैसला ‘भूरा बाल’ यानी भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ करेंगे।
आनंद मोहन के इस बयान ने सूबे की राजनीति में जातीय समीकरणों को एक बार फिर चर्चा के केंद्र में ला दिया है। उन्होंने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों पर एक साथ निशाना साधते हुए कहा कि आज की राजनीति में कोई चिराग पासवान से टकरा रहा है, तो कोई जीतन राम मांझी को चुनौती दे रहा है। कोई नीतीश कुमार के खिलाफ खड़ा है, तो कोई लालू यादव पर हमला बोल रहा है। लेकिन असली शक्ति उसी वर्ग के पास है जिसे राजनीति से बार-बार हाशिये पर धकेलने की कोशिश की गई है।
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि कभी राजनीति में ‘भूरा बाल साफ करो’ का नारा देने वाले लोग आज लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं। आनंद मोहन का कहना था कि इतिहास इस बात का गवाह है कि इमरजेंसी लगाकर जनता की आवाज दबाने वाले देश का नेतृत्व करने के योग्य नहीं हैं।
श्रद्धांजलि सभा के दौरान आनंद मोहन भावुक भी हो उठे। उन्होंने रघुवंश प्रसाद सिंह को याद करते हुए कहा कि वे जीवनभर समाज सेवा करते रहे और राजनीति को समाजवाद की बुनियाद पर खड़ा करने का काम किया। उनका मानना था कि जाति और धर्म की राजनीति से ऊपर उठकर समाजवाद ही बिहार और देश को नई दिशा दे सकता है।
सभा में बोलते हुए आनंद मोहन ने समकालीन राजनीति में बढ़ती कट्टरता पर भी चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि गांधी की हत्या ने देश को पीछे धकेल दिया और अब सावरकर की प्रतिमाएं लगाना उसी दिशा में एक और कदम है। उनका मानना है कि चाहे बांग्लादेश में कट्टर मुसलमान हों या नेपाल में कट्टर हिंदू, हर बार कट्टरपंथ ने समाजवाद और लोकतंत्र को कमजोर किया है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि अगर बिहार को सही मायनों में नई दिशा देनी है तो जाति और कट्टरवाद की राजनीति से ऊपर उठना होगा। अन्यथा लोकतंत्र अपने असली उद्देश्य तक नहीं पहुंच पाएगा।






















