Bihar Politics 2025: लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा और एनडीए को बिहार में कई सीटों पर झटका लगा था। भाजपा अपनी पाँच सीटें हार गई थी और सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा भी करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी। इस हार के पीछे कुछ ऐसे चेहरे रहे, जिन्होंने बगावती तेवर दिखाते हुए चुनाव मैदान में उतरकर एनडीए को नुकसान पहुंचाया। लेकिन अब वही चेहरे धीरे-धीरे भाजपा के करीब आते नजर आ रहे हैं, जिससे बिहार की राजनीति में नया समीकरण बनता दिख रहा है।
सबसे बड़ा उदाहरण बक्सर से सामने आया है। यहां भाजपा उम्मीदवार मिथिलेश तिवारी की हार का बड़ा कारण बने पूर्व आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा ने मंगलवार को भाजपा की सदस्यता ले ली। माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी उन्हें टिकट दे सकती है। बक्सर में मिश्रा ने बतौर निर्दलीय मजबूत पकड़ बनाई थी और भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाई थी।
इसी तरह काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने वाले भोजपुरी स्टार पवन सिंह भी अब भाजपा नेताओं से नजदीकियां बढ़ा रहे हैं। पवन सिंह हाल ही में भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री आरके सिंह से दिल्ली में मिले। लोकसभा चुनाव में उनकी लोकप्रियता ने उपेंद्र कुशवाहा की हार सुनिश्चित कर दी थी। राजपूत समाज से आने वाले पवन सिंह के मैदान में उतरने से कुशवाहा वोटरों में असंतोष पनपा और इसका असर सिर्फ काराकाट ही नहीं बल्कि औरंगाबाद और आरा की सीटों पर भी दिखा, जो एनडीए के हाथ से निकल गईं।
चर्चा है कि विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा इन असंतुष्ट और लोकप्रिय चेहरों को अपने साथ जोड़कर सामाजिक समीकरण को साधना चाह रही है। बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा अहम भूमिका निभाते रहे हैं और भाजपा जानती है कि राजपूत समाज में पवन सिंह की स्वीकार्यता तथा आनंद मिश्रा की साफ-सुथरी छवि पार्टी को फायदा पहुँचा सकती है।
भाजपा यह संदेश देने में जुटी है कि लोकसभा चुनाव में हार के ‘विलेन’ अब विधानसभा चुनाव में उसके ‘हीरो’ साबित हो सकते हैं। बिहार की राजनीति में यह बदलाव चुनावी रणनीति के लिहाज से बड़ा संकेत है। भाजपा की कोशिश है कि जो चेहरे लोकसभा में उसके खिलाफ गए, उन्हें साधकर विधानसभा में बढ़त बनाई जाए।






















