Nitish Kumar Active Mode: बिहार में हालिया चुनावी समापन के साथ ही जहां सत्ता की बागडोर एक बार फिर नीतीश कुमार के हाथों में आ चुकी है, वहीं जनता दल यूनाइटेड का अंदरूनी हलचल बताता है कि पार्टी अभी आराम के मूड में नहीं है। 85 विधायकों की मजबूत संख्या और एनडीए की प्रचंड जीत के बावजूद JDU नेतृत्व लगातार संगठन विस्तार, राजनीतिक रणनीति और भविष्य की पीढ़ी को तैयार करने में जुट गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले दिनों जिस गति और ऊर्जा के साथ बिहारभर में दौरे, समीक्षा बैठकें और राजनीतिक कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं, वह यह संदेश देता है कि चुनावी जीत सिर्फ शुरुआत थी, अब पार्टी की सबसे बड़ी लड़ाई, सबसे बड़ी पार्टी बनने की, शुरू हो चुकी है।
JDU के अंदर दो नाम फिलहाल पर्दे के पीछे सबसे ज्यादा सक्रिय बताए जा रहे हैं। एक हैं राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, जिन्होंने कठिन राजनीतिक माहौल के बीच पार्टी को चुनावी सफलता तक पहुंचाया। और दूसरे हैं मनीष वर्मा, जिनकी रणनीतिक मौजूदगी ने चुनावी कैंपेन से लेकर जातीय समीकरणों की बारीकियों तक JDU को नई धार दी है। यह दोनों चेहरे ऐसी मशीनरी के रूप में उभर रहे हैं, जो JDU की अंदरूनी संरचना को नई दिशा दे रहे हैं और शायद भविष्य के बड़े फैसलों की स्क्रिप्ट भी यही दो लोग लिख रहे हैं।
पार्टी के पुराने नेताओं के मन में हमेशा यह टीस रही है कि JDU सत्ता में निर्णायक भूमिका निभाने के बावजूद सीटों के मामले में बीजेपी से पीछे रह जाती है। इस बार भी वही स्थिति बनी। लेकिन इस टीस से ही एक नई चाहत जन्म ले रही है-JDU को बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनाना। संगठनात्मक सक्रियता, तेजी से चल रहा सदस्यता अभियान और लगातार होने वाले बदलाव साफ बताते हैं कि पार्टी इस लक्ष्य को अगले दो वर्षों के भीतर हासिल करने की तैयारी में है। अगर ऐसा हुआ तो JDU को न सिर्फ राजनीतिक माइलेज मिलेगा, बल्कि संवैधानिक रूप से भी पार्टी की स्थिति और मजबूत होगी।
इसी बीच चर्चा का केंद्र अचानक नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार बन गए हैं। चुनाव के दौरान उन्हें राजनीति से दूर बताया गया था, लेकिन अब JDU के शीर्ष नेतृत्व, खासतौर पर संजय झा, ने उन्हें भविष्य का चेहरा बताकर बिहार की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। माना जा रहा है कि क्षेत्रीय दलों में नेतृत्व का हस्तांतरण तभी सफल होता है जब पार्टी की अगली पीढ़ी को समय रहते आगे लाया जाए। निशांत की शांत प्रकृति, सादगी, संयमित छवि और पिता के साथ उनके आत्मीय रिश्तों ने पहले से ही उन्हें जनता के बीच एक स्वीकार्य चेहरा बना दिया है।
राजनीतिक हलकों में यह भी कहा जा रहा है कि मकर संक्रांति के बाद यानी 15 जनवरी से 22 जनवरी के बीच किसी भी दिन निशांत कुमार की औपचारिक राजनीतिक एंट्री हो सकती है। उनके लिए संगठन में बड़ी जिम्मेदारी या फिर चरणबद्ध तरीके से विधान परिषद की सदस्यता की राह खोली जा सकती है। इससे JDU नेतृत्व में न सिर्फ स्पष्टता आएगी, बल्कि पार्टी को युवा और विश्वसनीय चेहरा भी मिलेगा जिससे किसी भी तरह की टूट या अस्थिरता की आशंका खत्म हो जाएगी।
बिहार की राजनीति इस समय बीजेपी की लगातार आक्रामकता से भरी हुई है, लेकिन JDU जिस तरीके से नीतीश-से-निशांत की ट्रांजिशन स्क्रिप्ट को आगे बढ़ा रही है, उससे साफ है कि आने वाले महीनों में राज्य की राजनीति कई बड़े घटनाक्रमों की साक्षी बनने वाली है। स्थिर सरकार के बीच होने वाली कोई भी ऐसी हलचल रणनीतिक रूप से बेहद प्रभावशाली होगी। संकेत साफ हैं-बिहार में जल्द ही JDU का बड़ा ‘पॉलिटिकल ऐक्ट’ सामने आ सकता है।






















