बिहार की राजनीति (Bihar Caste Politics) एक बार फिर उबाल पर है। धर्मगुरु जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा जातिगत व्यवस्था समाप्त करने की अपील ने पूरे राजनीतिक गलियारे में नई हलचल पैदा कर दी है। बयान आते ही सत्ता पक्ष, विपक्ष और समाजिक संगठनों के नेता एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की फायरिंग में जुट गए हैं। सांसद पप्पू यादव ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे रामभद्राचार्य को नहीं जानते और ऐसे विचारों का इलाज केवल अंबेडकरवादी सोच ही कर सकती है। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत की आत्मा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ और समानता में बसती है, न कि किसी धार्मिक वर्चस्व या भेदभाव में।
इधर बीजेपी की ओर से मंत्री लखेंद्र कुमार ने रामभद्राचार्य की बात का समर्थन किया और कहा कि जातिगत विभाजन देश को कमजोर करता है। मंत्री लखेंद्र कुमार रौशन ने कहा कि मैं रामभद्राचार्य की बातों का समर्थन करता हूं। लंबे समय से जाति व्यवस्था और वर्ण के आधार पर समाज के बंटवारे ने इस देश को कमजोर करने में बड़ी भूमिका निभाई है।
इस राजनीतिक समर्थन के बाद बहस और भड़क उठी। कांग्रेस नेता प्रेमचंद मिश्रा ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि ऐसे बयानों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को स्थिति साफ करनी चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि एससी-एसटी एक्ट और आरक्षण संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकार हैं और जो कोई इसे समाप्त करने की कोशिश करेगा, वह खुद राजनीतिक और सामाजिक रूप से समाप्त हो जाएगा।
विवाद बढ़ते देख जेडीयू ने बीजेपी के रुख से दूरी बना ली। पार्टी के प्रवक्ता अरविंद निषाद ने कहा कि आरक्षण छूने लायक विषय नहीं है और देश संविधान से ही चलेगा। उनके बयान से साफ हो गया कि एनडीए गठबंधन के भीतर भी इस मुद्दे पर मतभेद हैं और राजनीतिक समीकरणों पर इसका असर देखने को मिल सकता है।
उधर आरजेडी ने इस बहस को वंचितों और दलितों पर हमले की कोशिश बताया। प्रवक्ता एजाज अहमद ने कहा कि ऐसे बयान आरएसएस और बीजेपी की मानसिकता को उजागर करते हैं। उनका कहना था कि एससी-एसटी एक्ट ने दलितों पर अत्याचारों को कम किया है और इसे कमजोर करने की कोई भी कोशिश सामाजिक अन्याय को बढ़ावा देगी।






















