बिहार के किशनगंज जिले की ठाकुरगंज विधानसभा सीट, निर्वाचन क्षेत्र संख्या 53 (Thakurganj Vidhansabha) राज्य की सबसे चर्चित सीटों में गिनी जाती है। यह सीट न केवल अपने राजनीतिक इतिहास के कारण सुर्खियों में रहती है बल्कि जातीय समीकरण और मुस्लिम बहुल आबादी इसे और भी निर्णायक बना देती है। ठाकुरगंज में अब तक कुल 15 विधानसभा चुनाव और एक उपचुनाव हो चुके हैं, जिनमें सबसे ज्यादा बार कांग्रेस पार्टी विजयी रही है। कांग्रेस ने यहां 8 बार जीत दर्ज की है, जबकि जेडीयू, बीजेपी, जनता पार्टी, एलजेपी, समाजवादी पार्टी और जनता दल ने एक-एक बार यहां से विजय हासिल की है।
चुनावी इतिहास
ठाकुरगंज विधानसभा का राजनीतिक सफर कई उतार-चढ़ाव से गुजरा है। साल 1995 का चुनाव यहां ऐतिहासिक साबित हुआ जब बीजेपी के सिकंदर सिंह ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर देकर जीत हासिल की। हालांकि उसके बाद इस सीट की तस्वीर बदलती चली गई। 2010 और 2015 दोनों चुनावों में एलजेपी के नौशाद आलम का दबदबा रहा। उन्होंने पहले कांग्रेस और फिर जदयू को शिकस्त दी। 2015 में नौशाद आलम ने एलजेपी से चुनाव लड़ते हुए गोपाल कुमार अग्रवाल को 8 हजार से अधिक वोटों से हराया था।
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लेकिन 2020 में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गया। इस बार मैदान में राजद के सौद आलम उतरे और उन्होंने भारी अंतर से जीत दर्ज कर ठाकुरगंज विधानसभा को राजद के खाते में डाल दिया। सौद आलम को कुल 79,909 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंदी निर्दलीय उम्मीदवार गोपाल कुमार अग्रवाल को 56,022 वोट हासिल हुए। जदयू के पूर्व विधायक नौशाद आलम तीसरे स्थान पर रहे और उन्हें केवल 22,082 वोट मिले। यह नतीजा साफ संकेत देता है कि ठाकुरगंज में मुस्लिम वोटरों का झुकाव निर्णायक रूप से राजद की ओर हुआ और इससे चुनावी गणित पूरी तरह पलट गया।
जातीय समीकरण
ठाकुरगंज विधानसभा का जातीय समीकरण हमेशा से इसकी राजनीति का केंद्र रहा है। यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है और यही समुदाय यहां की हार-जीत को तय करता है। इसके अलावा यादव, पासवान, रविदास, कुर्मी, कोड़री, ब्राह्मण, भूमिहार और राजपूत मतदाता भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं, लेकिन मुस्लिम वोटरों की एकजुटता किसी भी उम्मीदवार की किस्मत का फैसला कर देती है।
Bahadurganj Vidhansabha: कांग्रेस के गढ़ में AIMIM की सेंध और मुस्लिम समीकरण का गणित
वर्तमान में ठाकुरगंज विधानसभा क्षेत्र में कुल 2.84 लाख मतदाता दर्ज हैं। इनमें पुरुष वोटर 1.46 लाख (51.44%), महिला वोटर 1.37 लाख (48.53%) और ट्रांसजेंडर मतदाता 6 (0.002%) हैं। यह सीट जिस पार्टी के हाथ में जाती है, वह पार्टी स्वाभाविक रूप से सीमांचल की राजनीति में मजबूत स्थिति हासिल कर लेती है। यही वजह है कि 2025 का विधानसभा चुनाव आते-आते ठाकुरगंज एक बार फिर बिहार की सियासत में सुर्खियों का केंद्र बनने वाला है।






















