बिहार की राजनीति में जहां एक ओर गठबंधन का खेल गहराता जा रहा है, वहीं एनडीए (NDA) के भीतर बढ़ती नाराजगी अब खुलकर सामने आने लगी है। राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा का हालिया बयान इस नाराजगी का ताजा संकेत है।
मोदी का मंच, नीतीश का आयोग – दोनों से उपेक्षा
बिक्रमगंज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया रैली में उपेंद्र कुशवाहा को ना तो मंच पर सम्मान मिला, और ना ही नाम तक लिया गया। वहीं दूसरी ओर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ओर से राज्य की किसी भी आयोग या कमेटी में कुशवाहा की पार्टी के नेता को जगह नहीं दी गई। यह दोहरा अपमान कुशवाहा को भीतर तक खल गया है।
‘मैं डूबा तो तुम भी डूबोगे’ – कुशवाहा का सीधा इशारा
एक जनसभा में उपेंद्र कुशवाहा ने कहा – कुछ लोग सोचते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा कद्दू की बत्ती है… लेकिन याद रखो, हम सब एक नाव पर हैं। मैं डूबा तो तुम भी डूबोगे। यह बयान सीधे-सीधे एनडीए की उस संरचना पर सवाल है जहां सहयोगी दलों की अहमियत कम हो गई है और ‘बिग ब्रदर्स’ की राजनीति हावी है।
सीटों की सियासत और बढ़ती मांग
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, राष्ट्रीय लोक मोर्चा बिहार की कम से कम 15 विधानसभा सीटों पर दावा कर रही है। हालांकि पार्टी विधानसभा और लोकसभा में शून्य पर है, पर उनका दावा है कि ग्राउंड पर जनाधार उन्हें मजबूत बनाता है। यदि बात नहीं बनी तो पार्टी 5 सीटों पर भी लड़ाई के लिए तैयार है — लेकिन ‘सम्मान’ की शर्त के साथ।
चिराग पासवान की ‘मुख्यमंत्री’ वाली चाल
उधर, लोजपा (रामविलास) प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का बयान भी सियासी हलचल पैदा कर गया है। उन्होंने कहा है कि अगर पार्टी कहेगी तो वो बिहार विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। ये बयान ऐसे समय आया है जब एनडीए में सीएम फेस को लेकर सवाल गहराए हुए हैं। क्या चिराग खुद को सीएम की रेस में लाने की कोशिश कर रहे हैं?
क्या बिहार NDA एक और बगावत के मुहाने पर है?
2015 और 2020 के चुनावी अनुभवों से एनडीए को ये स्पष्ट है कि घटक दलों की अनदेखी भारी पड़ सकती है। कुशवाहा जैसे नेता अगर पाला बदलते हैं, तो सीमांत और कुशवाहा बाहुल्य इलाकों में नुकसान तय है। वहीं, चिराग पासवान की बढ़ती महत्वाकांक्षा से जेडीयू असहज है।