बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) के नतीजों को लेकर सियासी हलचल और आरोप-प्रत्यारोप के बीच आज एक अहम संवैधानिक पड़ाव आ गया है। सोमवार, 29 दिसंबर को बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम जारी हुए पूरे 45 दिन पूरे हो रहे हैं और कानून के मुताबिक आज का दिन चुनाव परिणामों को अदालत में चुनौती देने का अंतिम अवसर है। इसके बाद न तो उम्मीदवार और न ही मतदाता चुनाव नतीजों के खिलाफ किसी भी तरह की याचिका दाखिल कर पाएंगे। ऐसे में यह सवाल और गहरा हो गया है कि इतने बड़े चुनाव और व्यापक स्तर पर लगे आरोपों के बावजूद अब तक महज चार विधानसभा सीटों के नतीजों को ही पटना हाईकोर्ट में चुनौती क्यों दी गई।
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से अब तक केवल नरपतगंज, मधुबनी, मोहिउद्दीननगर और टेकारी सीट के परिणामों पर ही कानूनी सवाल खड़े हुए हैं। इन चारों सीटों से हारे हुए उम्मीदवारों ने पटना हाईकोर्ट का रुख किया है। नरपतगंज से राजद प्रत्याशी मनीष यादव, मधुबनी से रालोजपा के गणेश कुमार महरान, मोहिउद्दीननगर से राजद के डॉ. इज्या यादव और टेकारी से हम पार्टी के डॉ. अनिल कुमार ने चुनाव परिणामों में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग की है। इन याचिकाओं के जरिए मतगणना प्रक्रिया और चुनावी पारदर्शिता पर सवाल उठाए गए हैं।
चुनाव कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि यदि किसी उम्मीदवार या मतदाता को चुनाव में धांधली, वोट चोरी या नियमों के उल्लंघन का संदेह हो, तो वह परिणाम घोषित होने की तारीख से 45 दिनों के भीतर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सकता है। इसके बाद अदालतें ऐसे मामलों पर विचार नहीं करतीं। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे 14 नवंबर को घोषित किए गए थे, ऐसे में आज की तारीख कानूनी रूप से निर्णायक बन जाती है। आज के बाद वोट चोरी या धांधली से जुड़े आरोप केवल राजनीतिक बयानबाज़ी तक सीमित रह जाएंगे, उन्हें अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
इस पूरे घटनाक्रम का राजनीतिक महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि चुनावी नतीजे सत्ताधारी एनडीए के पक्ष में आए थे, जबकि महागठबंधन को करारी और अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा था। चुनाव परिणाम आने के बाद विपक्षी दलों ने ईवीएम और वोटिंग प्रक्रिया को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे। वोट चोरी से लेकर प्रशासनिक पक्षपात तक के दावे सार्वजनिक मंचों पर किए गए, लेकिन जब इन आरोपों को कानूनी लड़ाई में बदलने का वक्त आया, तो केवल चार सीटों पर ही याचिकाएं दायर की गईं। यह स्थिति विपक्ष की रणनीति और दावों दोनों पर सवाल खड़े करती है।
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इसी बीच बिहार कांग्रेस के कुछ नेताओं ने एक अलग रास्ता अपनाते हुए चुनाव परिणामों के बजाय सीधे निर्वाचन आयोग के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले अमित टुन्ना, ऋषि मिश्रा, प्रवीण कुशवाहा, तौकीर आलम और शशांक शेखर ने चुनाव को रद्द करने की मांग करते हुए गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका दावा है कि चुनाव के दौरान कथित तौर पर 10-10 हजार रुपये बांटकर वोट खरीदे गए और निर्वाचन आयोग ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।
कांग्रेस नेताओं का आरोप है कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग ने सत्ताधारी सरकार को गैर-कानूनी तरीके से फायदा पहुंचाया। उन्होंने तुलना करते हुए कहा कि तेलंगाना चुनाव में कांग्रेस द्वारा मोबाइल फोन देने की योजना पर चुनाव आयोग ने तुरंत रोक लगा दी थी, जबकि बिहार में कथित रूप से नकद राशि बांटे जाने के बावजूद कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया। कांग्रेस का यह तर्क चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सीधा सवाल खड़ा करता है और आने वाले समय में इस याचिका पर अदालत का रुख बेहद अहम माना जा रहा है।






















