बिहार में सड़क सुरक्षा और परिवहन निगरानी को लेकर एक गंभीर तस्वीर सामने आई है। राज्य में नेशनल परमिट से पंजीकृत 48 हजार से अधिक वाहनों में से महज दो प्रतिशत, यानी करीब 1100 वाहनों में ही वाहन लोकेशन ट्रैकिंग डिवाइस (VLTD) लगी हुई है। इसका सीधा अर्थ यह है कि अधिकांश व्यावसायिक वाहन सरकार की डिजिटल निगरानी प्रणाली से बाहर हैं, जिससे न सिर्फ प्रशासनिक नियंत्रण कमजोर पड़ रहा है, बल्कि सड़क सुरक्षा पर भी बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।
इस चौंकाने वाली स्थिति को लेकर बिहार सरकार ने अब सख्त रुख अपनाया है। परिवहन एवं ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने नालंदा के सर्किट हाउस में आयोजित प्रेस वार्ता में स्पष्ट किया कि परिवहन विभाग की समीक्षा बैठक में ये आंकड़े सामने आए हैं और इन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि सभी संबंधित वाहनों में 15 दिनों के भीतर अनिवार्य रूप से VLTD लगाने के निर्देश जारी किए गए हैं। तय समय सीमा में नियमों का पालन नहीं होने पर वाहन एजेंसियों के साथ-साथ ट्रैकिंग डिवाइस लगाने वाली चयनित कंपनियों पर भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
मंत्री ने यह भी बताया कि वर्ष 2019 से अब तक बिहार में लगभग 1.25 लाख सार्वजनिक परिवहन वाहन पंजीकृत हुए हैं, लेकिन इनमें से केवल 46 प्रतिशत वाहनों में ही अब तक ट्रैकिंग डिवाइस लग पाई है। यह आंकड़ा दिखाता है कि नियम बनने के बावजूद जमीनी स्तर पर उसका पालन बेहद कमजोर रहा है। फिलहाल राज्य सरकार ने 10 कंपनियों को VLTD लगाने की जिम्मेदारी सौंपी है, लेकिन यदि इनके कामकाज में सुधार नहीं होता है तो इन कंपनियों के अनुबंध रद्द करने से भी सरकार पीछे नहीं हटेगी।
सरकार ने वाहन एजेंसियों को भी सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया है। श्रवण कुमार ने कहा कि नियम के अनुसार नई गाड़ी की डिलीवरी के समय ही उसमें ट्रैकिंग डिवाइस लगाकर देना अनिवार्य है, लेकिन कई एजेंसियां इसमें लापरवाही बरत रही हैं। यदि 15 दिनों के भीतर स्थिति नहीं सुधरी तो एजेंसियों के खिलाफ भी कार्रवाई तय है। इससे साफ संकेत मिलता है कि सरकार अब केवल निर्देशों तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि कड़े फैसले लेने के मूड में है।
मंत्री ने बढ़ते सड़क हादसों और आपराधिक घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि कई मामलों में वाहनों का गलत इस्तेमाल होता है और बिना ट्रैकिंग के उनकी पहचान व निगरानी मुश्किल हो जाती है। VLTD के जरिए वाहनों की रियल टाइम लोकेशन, गति, रूट और लोड क्षमता जैसी महत्वपूर्ण जानकारियां मिल सकेंगी। हादसे की स्थिति में तुरंत मदद पहुंचाना आसान होगा और खासकर ग्रामीण इलाकों में परिवहन व्यवस्था पर प्रभावी नियंत्रण संभव हो पाएगा।



















