नई दिल्ली: बिहार की मतदाता सूची में संशोधन को लेकर चुनाव आयोग के 24 जून के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर आज सुनवाई की तारीख तय हो सकती है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने अपनी जनहित याचिका में चुनाव आयोग के उस आदेश को रद्द करने की मांग की है, जिसमें लाखों मतदाताओं से नागरिकता प्रमाणपत्र जमा करने को कहा गया था।
चुनाव आयोग ने 24 जून को जारी आदेश में बिहार की मतदाता सूची की समीक्षा करते हुए संदिग्ध मतदाताओं से नागरिकता प्रमाणपत्र (citizenship proof) मांगा था। ADR ने इसे मतदाताओं के मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। याचिका में दावा किया गया है कि यह आदेश मतदाताओं को अनावश्यक रूप से परेशान करने वाला है और इससे बड़ी संख्या में लोगों के मतदान के अधिकार पर प्रभाव पड़ सकता है।
ADR की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग का आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। संस्था का मानना है कि नागरिकता साबित करने का यह तरीका मनमाना है और इससे गरीब व वंचित तबके के लोगों को विशेष रूप से प्रभावित होना पड़ सकता है, जिनके पास अक्सर दस्तावेजों की कमी होती है।
मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई की तारीख तय की जा सकती है। न्यायालय यह भी तय कर सकता है कि क्या चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाने के लिए तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है। विधिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला न केवल बिहार बल्कि देश भर में मतदाता पंजीकरण प्रक्रिया से जुड़े नियमों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
इस मामले ने बिहार की राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। विपक्षी दलों का आरोप है कि सत्तारूढ़ दल मतदाता सूची में बदलाव करके चुनावी लाभ लेना चाहते हैं, जबकि सरकार और चुनाव आयोग का कहना है कि यह कदम मतदाता सूची को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए उठाया गया है।