बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Voter List 2025) से पहले मतदाता सूची को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद जारी अंतिम मतदाता सूची में 47 लाख नाम घटने का मामला अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। आंकड़ों के मुताबिक बिहार में कुल मतदाताओं की संख्या 7.89 करोड़ से घटकर 7.42 करोड़ रह गई है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इस कमी का कारण पुराने रिकॉर्ड की अशुद्धियां हैं या फिर वास्तविक नामों की कटौती।
भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने निर्वाचन आयोग से पारदर्शिता की मांग की है। उन्होंने सवाल उठाया कि फॉर्म-6 के जरिए जोड़े गए 22 लाख नामों में कितने नए और कितने पुराने मतदाता शामिल हैं। उनके अनुसार इन आंकड़ों की अस्पष्टता से संदेह पैदा हो रहा है और यह साफ नहीं है कि मतदाता सूची की पुरानी गलतियों को सुधारा गया है या नहीं। भट्टाचार्य ने भाजपा पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि अगर अब मतदाता सूची से कथित ‘घुसपैठियों’ के नाम हटा दिए गए हैं तो भाजपा को अपने झूठे प्रचार को बंद करना चाहिए, क्योंकि यह विमर्श महज समाज को बांटने की राजनीति थी।
इसी मुद्दे पर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी भाजपा पर निशाना साधा है। ओवैसी का आरोप है कि मतदाता सूची में बदलाव की आड़ में गरीब मुसलमानों और दलितों को निशाना बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भाजपा इस प्रक्रिया का इस्तेमाल धर्म और जाति के आधार पर मतदाताओं को परेशान करने के लिए कर रही है। ओवैसी ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा कि आज के भारत में गरीब मुसलमान और दलितों के पास केवल वोट देने का अधिकार ही सबसे बड़ा साधन है, लेकिन भाजपा उन्हें इस अधिकार से वंचित करने की साजिश कर रही है।






















