Bihar voter list controversy: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में चल रहे मतदाता सूची के ‘विशेष गहन पुनरीक्षण’ को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। बुधवार को जनता दल (यूनाइटेड) के बांका सांसद गिरधारी यादव ने इस प्रक्रिया की कड़ी आलोचना करते हुए चुनाव आयोग पर निशाना साधा। उन्होंने साफ कहा कि चुनाव आयोग को “कोई व्यावहारिक ज्ञान नहीं” है और यह प्रक्रिया जनता पर जबरन थोपी जा रही है।
“मेरा बेटा अमेरिका में, वो हस्ताक्षर कैसे करेगा?” – गिरधारी यादव
संसद के मानसून सत्र के दौरान पत्रकारों से बात करते हुए गिरधारी यादव ने कहा कि चुनाव आयोग को न तो बिहार का इतिहास पता है और न ही भूगोल। मुझे खुद सारे दस्तावेज़ इकट्ठा करने में 10 दिन लग गए। मेरा बेटा अमेरिका में रहता है, वह फॉर्म पर हस्ताक्षर कैसे करेगा?
उन्होंने इस प्रक्रिया की समयसीमा पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि यह काम छह महीने या उससे अधिक समय में होना चाहिए था। अभी मानसून का समय है, लोग खेती में व्यस्त हैं। ऐसे में यह प्रक्रिया शुरू करना दिखाता है कि आयोग को व्यावहारिक ज्ञान नहीं है।
“पार्टी से सिर्फ वोट डालने तक का नाता” – सांसद का विवादित बयान
जदयू के इस सांसद ने अपने बयान में और भी तीखे स्वर अपनाए। उन्होंने कहा कि अगर हम सच नहीं बोल सकते, तो सांसद क्यों बने? मेरा पार्टी से नाता सिर्फ वोट डालने तक है। यह मेरा स्वतंत्र विचार है, पार्टी के खिलाफ बयान नहीं। यह बयान महत्वपूर्ण है क्योंकि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया का पूरा समर्थन कर रहे हैं। गिरधारी यादव का यह बयान सत्तारूढ़ दल में ही मतभेदों को उजागर करता है।
52 लाख मतदाताओं के नाम काटने का विवाद
चुनाव आयोग ने कहा है कि यह संशोधन एक संवैधानिक रूप से अनिवार्य प्रक्रिया है, जिसमें मृतकों, प्रवासियों और दोहरे पंजीकरण वाले मतदाताओं के नाम हटाए जा रहे हैं। आयोग के अनुसार, अब तक लगभग 52 लाख प्रविष्टियाँ हटा दी गई हैं। हालांकि, विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि यह प्रक्रिया हाशिए के समुदायों और गरीब मतदाताओं को निशाना बना रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर सड़क पर प्रदर्शन भी किया है।
सुप्रीम कोर्ट में भी चल रहा मामला
इस विवाद ने अब कानूनी रूप ले लिया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को वैध पहचान पत्र के रूप में स्वीकार करने की मांग की गई है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने चुनाव आयोग को इस दिशा में विचार करने का सुझाव भी दिया था।