बिहार सरकार ने 90 के दशक में हुए कुख्यात ‘चारा घोटाले’ में गबन किए गए 950 करोड़ रुपये वापस लाने के लिए एक बार फिर तलवार खींच ली है। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा है कि सरकार इस राशि की वसूली के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी और सीबीआई समेत अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर कार्रवाई तेज करेगी। लेकिन सवाल यह है: क्या 29 साल से लटके इस मामले में अब भी न्याय की उम्मीद की जा सकती है? या फिर यह घोटाला बिहार की न्यायिक-प्रशासनिक व्यवस्था पर एक काला धब्बा बनकर रह जाएगा?
जब चारा बन गया ‘सोना’…
1990 के दशक में बिहार के पशुपालन विभाग ने ‘चारा’ के नाम पर ऐसा वित्तीय भूकंप रचा कि राज्य का खजाना 950 करोड़ रुपये तक हल्का हो गया। फर्जी बिलों के जरिए गाय-भैंसों के लिए चारा, दवाइयों और उपकरणों की खरीद दिखाकर अधिकारियों और नेताओं ने कोषागारों को लूट लिया। 1996 में चाईबासा के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर अमित खरे ने इस घोटाले का पर्दाफाश किया, जिसके बाद पटना हाईकोर्ट ने सीबीआई को जांच का आदेश दिया और गबन की राशि वापस लाने का निर्देश दिया। लेकिन तीन दशक बाद भी राज्य सरकार का खजाना खाली हाथ है!
लालू यादव से लेकर अफसरों तक… जेल गए, मगर पैसा नहीं लौटा
इस घोटाले ने बिहार की राजनीति को हिलाकर रख दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव समेत 60 से अधिक नेता-अफसर आरोपी बने। लालू को 2022 में डोरंडा कोषागार से 139.5 करोड़ की अवैध निकासी के मामले में 5 साल की सजा हुई, हालांकि वे स्वास्थ्य कारणों से जमानत पर हैं। कई आरोपी जेल की हवा खा चुके हैं, पर संपत्ति जब्ती और नीलामी का सवाल अटका हुआ है। पटना के पॉश इलाकों में घोटालेबाजों की कब्जे वाली संपत्तियों पर जब्ती के बोर्ड लगे हैं, मगर नीलामी की प्रक्रिया रसूखदारों के दबाव में अटकी हुई है।
क्यों फंसी है वसूली?
सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग की जांचें बताती हैं कि आरोपियों ने गबन के पैसों से प्रॉपर्टी, होटल, व्यवसाय समेत विदेशों तक में संपत्तियां जमा कीं। लेकिन इन्हें जब्त करने में कानूनी पेचीदगियां, फर्जी दस्तावेज और राजनीतिक हस्तक्षेप बाधा बने। घोटाले के याचिकाकर्ता सरयू राय कहते हैं, “संपत्ति जब्त करना आसान नहीं। कई आरोपियों ने अपनी जायदाद दूसरों के नाम कर दी है।” वहीं, पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सवाल उठाया: “क्या इतने सालों में एक भी संपत्ति नहीं बेची जा सकती? यह व्यवस्था की विफलता है।”