Bihpur Vidhan Sabha 2025: बिहार की राजनीति में भागलपुर जिले की बिहपुर विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या-152) का एक खास महत्व है। खगड़िया और मधेपुरा की सीमा पर बसा यह सबसे छोटा विधानसभा क्षेत्र दशकों से बदलते राजनीतिक समीकरणों का गवाह रहा है। कभी कांग्रेस और सीपीआई के बीच सीधी टक्कर देने वाली यह सीट समय-समय पर जनसंघ, आरजेडी और बीजेपी के उतार-चढ़ाव को देखती रही है। यही वजह है कि बिहपुर को बिहार की राजनीति का “मिनी बैरोमीटर” कहा जाता है।
चुनावी इतिहास
1990 तक यह सीट कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के बीच संघर्ष का मैदान बनी रही। लेकिन सियासी धारा बदलने के साथ समाजवादी धड़े और दक्षिणपंथी दलों ने यहां अपनी पैठ बनाई। खासकर भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर लगातार प्रभाव बढ़ाया।
2010 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी उम्मीदवार कुमार शैलेंद्र ने 48,027 (41.1%) मतों के साथ जीत हासिल की, जबकि आरजेडी के शैलेश कुमार को बेहद करीबी मुकाबले में 47,562 (40.7%) वोट मिले। कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। वहीं 2015 में समीकरण बदले और आरजेडी की वर्षा रानी ने 68,963 (48.4%) वोट पाकर जीत दर्ज की। बीजेपी के कुमार शैलेंद्र 56,247 (39.5%) वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे।
2020 में एक बार फिर राजनीतिक हवा बदली और बीजेपी ने मजबूत वापसी की। कुमार शैलेंद्र ने आरजेडी के शैलेश कुमार मंडल को 6,129 वोटों से मात दी। बीजेपी उम्मीदवार को 72,938 (48.53%) मत मिले जबकि आरजेडी प्रत्याशी को 66,809 (44.45%) वोट हासिल हुए। बसपा के मोहम्मद हैदर अली तीसरे स्थान पर रहे। इन नतीजों ने साफ कर दिया कि बिहपुर में सत्ता का खेल त्रिकोणीय होते-होते अंत में दो दलों – बीजेपी और आरजेडी – के इर्द-गिर्द सिमट जाता है।
जातीय समीकरण
बिहपुर विधानसभा का सामाजिक समीकरण भी इसे खास बनाता है। यहां भूमिहार मतदाता बहुल हैं, लेकिन यादव और मुस्लिम समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इनके अलावा राजपूत, ब्राह्मण, कुर्मी और पासवान मतदाताओं की भी अच्छी खासी संख्या है। जनगणना 2011 के अनुसार इस क्षेत्र की कुल आबादी 3,62,985 है, जिसमें अनुसूचित जाति का अनुपात 7.8% और अनुसूचित जनजाति का मात्र 0.03% है। इस जनसांख्यिकीय समीकरण के चलते कोई भी पार्टी एकतरफा जीत की उम्मीद नहीं कर सकती।
2025 में होने वाले चुनाव में भी बिहपुर सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा। भूमिहार मतदाताओं का रुझान जहां बीजेपी को मजबूती देता है, वहीं यादव-मुस्लिम गठजोड़ आरजेडी के लिए सहारा बनता है। ऐसे में स्थानीय मुद्दे, विकास योजनाएं और प्रत्याशी की छवि चुनावी दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएंगे।






















