Bikram Vidhansabha 2025: पटना जिले की बिक्रम विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 191) बिहार की उन अहम सीटों में गिनी जाती है, जहां हर दल ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। यह सीट न केवल राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण रही है, बल्कि यहां का चुनावी इतिहास भी उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। 1957 में कांग्रेस ने पहली जीत दर्ज की थी और 1972 तक यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती रही। लेकिन उसके बाद लंबे समय तक कांग्रेस यहां हाशिये पर रही। 2000 से 2010 तक बीजेपी ने लगातार जीत हासिल कर अपनी पकड़ मजबूत की। हालांकि 2015 और 2020 में कांग्रेस ने वापसी करते हुए सीट छीन ली और सिद्धार्थ सौरव को विधायक के रूप में विधानसभा भेजा।
चुनावी इतिहास
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सिद्धार्थ सौरव ने निर्दलीय उम्मीदवार अनिल कुमार को 35,460 वोटों के बड़े अंतर से मात दी थी। सिद्धार्थ को 86,177 वोट यानी 47.71% समर्थन मिला, जबकि अनिल कुमार को 28.08% वोट शेयर ही मिल पाया। इस जीत ने बीजेपी के उस दबदबे को पूरी तरह तोड़ दिया, जो 2000 से 2010 तक बना रहा था। दिलचस्प यह है कि अनिल कुमार, जो तीन बार बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत चुके थे, 2020 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे थे।
जातीय समीकरण
बिक्रम की राजनीति का सबसे अहम पहलू यहां का जातीय समीकरण है। करीब तीन लाख वोटरों वाली इस सीट पर भूमिहार जाति का सबसे अधिक प्रभाव है, जिनकी संख्या एक चौथाई से भी ज्यादा मानी जाती है। यादव वोटर भी बड़ी संख्या में मौजूद हैं और कई बार निर्णायक साबित होते रहे हैं। वहीं रविदास समुदाय भी यहां का महत्वपूर्ण सामाजिक आधार है। 1.40 लाख से अधिक पुरुष वोटर और बड़ी संख्या में महिला मतदाता यहां के नतीजे को सीधे प्रभावित करते हैं।
Paliganj Vidhansabha 2025: राजनीतिक समीकरण और जातीय गणित बदल सकता है चुनाव का नतीजा
अगर 2025 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन और एनडीए के बीच प्रदेश स्तर पर टकराव होता है, तो बिक्रम सीट पर स्थानीय जातीय गणित के साथ-साथ राज्य की राजनीतिक हवा भी निर्णायक भूमिका निभा सकती है। यही वजह है कि यह सीट एक बार फिर बिहार की राजनीति में सुर्खियों में रहने वाली है।