बेतिया : जन सुराज पार्टी के संस्थापक और चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की बहुप्रतीक्षित ‘बिहार बदलाव रैली’ पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित हुई, लेकिन यह रैली उनके दावों से कोसों दूर रही। प्रशांत किशोर ने दावा किया था कि इस रैली में 10 लाख लोग पहुंचेंगे और गांधी मैदान खचाखच भर जाएगा, लेकिन हकीकत ने उनके दावों की हवा निकाल दी। अब उनकी फ्लॉप रैली को लेकर बीजेपी ने तंज कसा है।
जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर की बदलाव रैली पर भाजपा सांसद संजय जायसवाल ने कहा कि चुनावी रणनीति बनाना और खुद कार्यकर्ता बनकर चुनावी यात्रा पर निकलना, दोनों में बहुत फर्क है। हर CA देश के सभी उद्योगों का DPR बनाता है। CA यह भी बताता है कि वह कारखाना पांच साल तक कैसे पैसा कमाएगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अगर कोई CA रिफाइनरी लगा लेगा तो वह भी जामनगर रिफाइनरी जैसी ही होगी। रणनीति बनाने और जमीन पर काम करने में बहुत फर्क होता है। प्रशांत किशोर बिहार में मुख्यमंत्री बनने आए थे। कल उनके मुख्यमंत्री बनने के सभी प्रयासों का समापन समारोह था।
इसके अलावा बीजेपी सांसद ने सोशल मीडिया पर भी पोस्ट लिखकर निशाना साधा। उन्होंने लिखा कि बिहार में कहीं भी कोई राजनीतिक दल की रैली होती है तो जाहिर बात है 10 फीसदी गाड़ियां रास्ते में फंसी रह जाती हैं। प्रशांत किशोर इन्हीं गाड़ियों के भरोसे यह कह रहे हैं कि चार लाख की रैली जिसमें 2 लाख कुर्सियां लगी थी वहां 20 हजार व्यक्ति इसलिए उपस्थित हुए क्योंकि गांधी सेतु जाम था।

बीजेपी सांसद संजय जायसवाल ने आगे लिखा कि प्रशांत किशोर को दिक्कत रैली में नहीं अपने बारे में जरूर से ज्यादा कन्फ्यूजन होने में है। देश में जितने औद्योगिक घराने हैं सब कोई भी फैक्ट्री लगाते समय एक चार्टर्ड अकाउंटेंट को जिम्मेवारी देते हैं। वह जमीन से लेकर पूरे उद्योग लगाने का और उसके बाद अगले 5 साल में कितना पैसा कमाएंगे उसका डीपीआर बनाता है। उसी हिसाब से उद्योगपति अपना काम करता है और करोड़ों रुपए कमाता है। इसको लेकर अगर किसी सीए को यह कंफ्यूजन हो जाए कि मेरे ही कारण अंबानी या टाटा घराना है तो उस चार्टर्ड अकाउंटेंट के दिमाग की बलिहारी है!
प्रशांत किशोर की ‘बदलाव रैली’ फ्लॉप, गांधी मैदान में नहीं जुट पाई भीड़
उन्होंने कहा कि कुछ यही हाल प्रशांत किशोर का है। वह चुनाव के अच्छे चार्टर्ड अकाउंटेंट है पर उनको यह कंफ्यूजन हो गया कि जब सभी चुनावों के बारे में आइडिया देते हैं और उसी हिसाब से नेता काम करता है तो मैं खुद चुनावी अंबानी या टाटा क्यों नहीं बन जाऊं। सब गड़बड़ यहीं है।