Bihar Cabinet Expansion: बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने बड़ा सियासी दांव खेला है। आनन-फानन में कैबिनेट विस्तार किया जा रहा है और आज शाम 4 बजे राजभवन में शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया है। लेकिन इस विस्तार के पीछे सिर्फ सत्ता संतुलन नहीं, बल्कि गहरी राजनीतिक रणनीति छिपी है।
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भाजपा ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए अति पिछड़ों से लेकर अगड़ी जातियों तक हर वर्ग को साधने की कोशिश की है। यह कदम विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा की वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
भाजपा की रणनीति: जातीय संतुलन साधने की कोशिश?
भाजपा कोटे से जिन नेताओं को मंत्री बनाने जा रहा है, उनमें अगड़ी जातियों के साथ-साथ अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और पिछड़ा वर्ग (OBC) को भी प्रमुखता दी गई है।
अति पिछड़ी जाति (EBC):
- मोतीलाल प्रसाद (तेली जाति) – रीगा से विधायक
- विजय मंडल (कैवर्थ जाति) – सिकटी से विधायक
पिछड़ी जाति (OBC):
- कृष्ण कुमार मंटू (कुर्मी जाति) – अमनौर से विधायक
अगड़ी जाति (Upper Caste):
- राजू सिंह (राजपूत जाति) – साहेबगंज से विधायक
- जीवेश मिश्रा (भूमिहार जाति) – जाले से विधायक
- संजय सरावगी (वैश्य जाति) – दरभंगा से विधायक
जातीय संतुलन के पीछे क्या है भाजपा की सोच?
बिहार में जाति हमेशा से राजनीति की धुरी रही है। भाजपा इस मंत्रिमंडल विस्तार में हर प्रमुख जाति को प्रतिनिधित्व देकर 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रख रही है।
- EBC पर फोकस: बिहार में EBC की आबादी करीब 30-35% है, जिसे साधे बिना कोई भी पार्टी सत्ता में नहीं रह सकती। भाजपा ने तेली और कैवर्थ जाति के नेताओं को मंत्री बनाकर इस समुदाय को साधने की कोशिश की है।
- भूमिहार-राजपूत-वैश्य को प्रतिनिधित्व: भाजपा का अपर कास्ट वोट बैंक मजबूत करने के लिए भूमिहार, राजपूत और वैश्य नेताओं को मंत्री बनाया गया है।
- कुर्मी को भी जगह: कुर्मी जाति से कृष्ण कुमार मंटू को मंत्री बनाकर नीतीश कुमार के प्रभाव वाले इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की गई है।
इससे पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री दिलीप जायसवाल ने कैबिनेट विस्तार से ठीक पहले इस्तीफा दे दिया। इस कदम को भाजपा के ‘एक व्यक्ति, एक पद’ नीति के कारण दिया है। दिलीप जायसवाल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही इसको लेकर कयास लगाए जा रहे थे।