Brahmpur Vidhan Sabha 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की आहट तेज़ होते ही बक्सर ज़िले की ब्रह्मपुर विधानसभा सीट फिर सुर्खियों में है। निर्वाचन क्षेत्र संख्या 199 ब्रह्मपुर सीट, जो एक सामान्य (अनारक्षित) विधानसभा क्षेत्र है, अपने जातीय संतुलन और बदलते राजनीतिक समीकरणों के कारण हमेशा चर्चा में रही है। 1950–70 के दशक में कांग्रेस का गढ़ मानी जाने वाली यह सीट आज पूरी तरह से आरजेडी बनाम एनडीए के बीच मुकाबले में तब्दील हो चुकी है।
चुनावी इतिहास
2008 के परिसीमन के बाद ब्रह्मपुर सीट में सिमरी, चक्की और ब्रह्मपुर प्रखंड शामिल हुए, जिससे इसके राजनीतिक और जातीय स्वरूप में बड़ा परिवर्तन आया। एक समय था जब कांग्रेस के नेताओं का यहां पर दबदबा था, लेकिन 1977 के जेपी आंदोलन के बाद कांग्रेस का जनाधार तेज़ी से खिसकता गया और जनता पार्टी तथा समाजवादी ताकतों ने अपनी पैठ जमानी शुरू कर दी। 1990 के दशक के बाद यह सीट कांग्रेस के प्रभाव क्षेत्र से बाहर हो गई और राजनीतिक मुकाबला आरजेडी और एनडीए के बीच सीमित हो गया।
ब्रह्मपुर सीट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बताती है कि यहां अब तक 17 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। कांग्रेस और राजद दोनों ने इस सीट से पाँच-पाँच बार जीत हासिल की है, जबकि बीजेपी और निर्दलीयों ने दो-दो बार बाज़ी मारी है। लोकतांत्रिक कांग्रेस, जनता पार्टी और जनता दल ने एक-एक बार जीत दर्ज की है। 2005 और 2010 में बीजेपी ने यहां मजबूत प्रदर्शन कर कांग्रेस और राजद दोनों को चुनौती दी थी।
वर्तमान में यह सीट आरजेडी के खाते में है और शंभूनाथ यादव लगातार दो बार विधायक बने हैं। 2015 और 2020 दोनों ही चुनावों में यादव ने मजबूत जनाधार और यादव-मुस्लिम गठजोड़ के बल पर जीत दर्ज की थी। 2020 में एनडीए ने यह सीट वीआईपी को दी थी, लेकिन लोजपा प्रत्याशी के मैदान में उतरने से वोट बंट गया और आरजेडी को फायदा मिल गया। हालांकि इस बार एनडीए के भीतर संभावित एकजुटता से मुकाबला त्रिकोणीय और रोचक हो सकता है।
जातीय समीकरण
ब्रह्मपुर की राजनीति की सबसे बड़ी बुनियाद जातीय समीकरण हैं। इस क्षेत्र में यादव समुदाय की संख्या निर्णायक मानी जाती है और यह परंपरागत रूप से राजद के साथ खड़ा रहता है। मुस्लिम मतदाता भी यादवों के साथ मिलकर महागठबंधन को मजबूती देते हैं। दूसरी ओर, भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूत मतदाता एनडीए की राजनीतिक रीढ़ हैं। भाजपा-जदयू का समर्थन इन्हीं वर्गों के जरिए मजबूत होता है। पासवान समुदाय एलजेपी के प्रभाव में रहता है जबकि महादलित और चमार वर्ग के वोट उम्मीदवार की लोकप्रियता पर निर्भर करते हैं।






















